नई दिल्ली। उत्तराखंड क्रिकेट संघ (सीएयू) ने सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी के दौरान लगे सीनियर टीम के कैंप में मौलवियों द्वारा कोच वसीम जाफर और कप्तान इकबाल अब्दुल्ला सहित कुछ खिलाड़ियों को नमाज अदा कराने की वजह से बायो-बबल (कोरोना से बचाव को लेकर खिलाड़ियों के लिए बनाए गए विशेष माहौल) टूटने की जांच कराने का फैसला किया है।
सीएयू के सचिव और बीसीसीआइ के पूर्व उपाध्यक्ष महिम वर्मा ने कहा कि मैंने जनरल मैनेजर मोहित डोभाल से कहा है कि वह उस समय टीम के मैनेजर रहे नवनीत मिश्रा से इस मामले में रिपोर्ट मांगे। वहीं पूर्व मुख्य कोच व पूर्व भारतीय क्रिकेटर वसीम जाफर ने अपने ऊपर लगे मजहबी आरोपों को मुंबई में प्रेस कांफ्रेंस करके नकारा है। हालांकि उन्होंने यह माना कि कैंप के दौरान जुम्मे की नमाज अदा कराने के लिए मौलवी आए थे। अब्दुल्ला ने मौलवियों को बुलाया था। अब्दुल्ला मुझसे पूछने आए तो मैंने उनसे कहा कि मैनेजर से बात कर लो। मैनेजर की अनुमति के बाद हमने नमाज अदा की थी। उन्होंने बायो-बबल तोड़ने से इन्कार किया।
महिम ने कहा कि सीएयू ने जितने भी कैंप लगाए हैं, यहां तक महिलाओं के कैंप में भी बायो-बबल था। खिलाडि़यों को कोरोना से बचाने के लिए यह जरूरी था। इसके लिए हमने काफी धन भी खर्चा किया। निश्चित तौर पर खिलाडि़यों के अलावा अगर कोई भी बाहरी कैंप में जाता है और उनसे मिलता है तो बायो-बबल टूटता है। इससे बाकी खिलाडि़यों को भी कोरोना होने का खतरा बढ़ जाता है। मुझे इस बारे में तब नहीं पता चला वर्ना मैं तब ही एक्शन लेता।
वहीं वसीम ने मुंबई में कहा कि सीएयू ने जो आरोप लगाए हैं वह गलत हैं और बहुत ही दुख पहुंचाने वाले हैं। मैं इकबाल को कप्तान बनाना चाहता था, यह पूरी तरह गलत है। सबसे पहले उन्होंने कहा है कि मौलवी बायो-बबल में आए और हमने नमाज अदा की। मैं एक चीज बताना चाहता हूं कि देहरादून में दो या तीन शुक्रवार को मौलवी और मौलाना आए थे और मैंने उन्हें कॉल नहीं किया था। यह इकबाल था जिन्होंने मैनेजर से शुक्रवार को नमाज अदा करने के लिए अनुमति मांगी थी। टीम के प्रशिक्षण के बाद प्रार्थनाएं हुई और मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि यह मुद्दा क्यों बन गया। यदि मैं सांप्रदायिक होता तो अपनी प्रार्थना के समय के दौरान अभ्यास के समय को दूसरा कर सकता था, लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया।
सीएयू के एक अधिकारी ने कहा कि एक तरफ जाफर ने दूसरे धर्मो का ख्याल रखते हुए टीम के स्लोगन राम भक्त हनुमान की जय को कहने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि यह धार्मिक स्लोगन है और दूसरी तरफ वह मौलवियों को बुलाकर बायो-बबल तोड़ रहे थे। वह ऐसा दोहरा रवैया कैसे अपना सकते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि बायो-बबल नहीं टूटना चाहिए था क्योंकि इससे किसी को भी कोरोना हो सकता था और पूरी टीम संकट में पड़ सकती थी।