महाराष्ट्र में हाथ जला चुकी BJP मध्य प्रदेश में फूंक-फूंक कर रख रही है कदम
नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी ने मध्य प्रदेश के वरिष्ठ कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपने साथ मिलाकर निश्चित ही एक बड़ा हाथ मारा है लेकिन महाराष्ट्र में हाथ जला चुकी भाजपा अब मध्य प्रदेश में अपनी सरकार बनाने को लेकर फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार को अल्पमत में लाने के लिए यह जरूरी है कि कांग्रेस के सभी 22 बागी विधायकों के त्यागपत्र स्वीकार कर लिए जाएं। इस समय सारा दारोमदार इसी बात पर है। इसमें महाराष्ट्र जैसा खतरा भी है जहां राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एन.सी.पी.) के अजीत पवार भाजपा के साथ आकर वापस लौट गए थे और भाजपा से सत्ता छिनने के साथ-साथ उसकी बड़ी बदनामी भी हुई थी। महाराष्ट्र में चोट खाकर भाजपा स्यानी हो गई है और मध्य प्रदेश के लिए उसने नई योजना तैयार की है।
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने इस योजना की बारीकी समझाई कि सिंधिया को भाजपा में शामिल करने से पहले उनके समर्थक विधायकों से इस्तीफे दिलवाए गए। इस्तीफे होने के बाद ही सिंधिया को भाजपा में शामिल कराया गया। अब गेंद विधानसभा स्पीकर और राज्यपाल के पाले में है या मामला अदालत में भी जा सकता है क्योंकि इनके इस्तीफे स्वीकार करने ही पड़ेंगे। यह सब होने पर कमलनाथ सरकार को गिराया जा सकेगा। भाजपा को 2 और बातों की ङ्क्षचता खा रही है और वे हंै इस प्रक्रिया में लगने वाला समय और खुद स्पीकर महोदय। मध्य प्रदेश के स्पीकर नर्मदा प्रसाद प्रजापति कमलनाथ के खासम-खास हैं और पिछले साल जनवरी में इस पद के लिए उनका चुनाव रोकने के लिए भाजपा ने जमीन-आसमान एक कर दिया था। दूसरे, अन्य राज्यों में खुद भाजपा के स्पीकर ऐसे मामलों में फैसला लेने में ‘अनंत काल’ तक प्रतीक्षा करवाने का उदाहरण प्रस्तुत कर चुके हैं। कांग्रेस के विधायक उड़ाते-उड़ाते कहीं भाजपा के अपने विधायक उसके हाथ से फुर्र होकर कांग्रेस में न चले जाएं, इस डर से पार्टी ने उन्हें हरियाणा से मानेसर भेजा हुआ है।
उपमुख्यमंत्री पद के लिए क्या सिंधिया ने रखी शर्त?
ऐसी बातें भी सामने आने लगी हैं कि सिंधिया ने भाजपा के सामने यह शर्त रखी है कि अगर मध्य प्रदेश में उसकी सरकार बनती है तो उनके एक समर्थक को उपमुख्यमंत्री का पद दिया जाए। भाजपा नेताओं ने इस बात से इंकार किया है कि इस तरह की कोई शर्त रखी गई है। उन्होंने कहा कि मंत्रिमंडल बनाते समय भाजपा सिंधिया के सुझावों पर विचार जरूर करेगी। भाजपा नेताओं का यह दावा भी है कि केवल 2 विधायकों ने सिंधिया के भाजपा में शामिल होने पर अपना मतभेद जाहिर किया है जबकि बाकी उनके फैसले से राजी हैं।
शिवराज को सी.एम. न बनाने की अफवाह
एक अन्य महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार को उखाडऩे के अभियान में सबसे अग्रणी भूमिका निभा रहे भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बारे में यह अफवाहें उड़ रही हैं कि शायद उन्हें मुख्यमंत्री न बनाया जाए। इसकी बजाय उन्हें भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा की केंद्रीय टीम में उचित पद दिया जाए। भाजपा नेताओं ने इस बात से इंकार करते हुए कहा कि ऐसा कुछ नहीं है और शिवराज चौहान ही मुख्यमंत्री के रूप में पहली प्राथमिकता हैं।
सिंधिया समर्थक विधायक भाजपा में जाने को नहीं तैयार
ज्योतिरादित्य सिंधिया तो कांग्रेस से अपना दशकों पुराना रिश्ता तोड़कर भारतीय जनता पार्टी का हिस्सा बन गए हैं लेकिन उनके समर्थक विधायक भाजपा में जाने के लिए उत्साहित नहीं हैं। बताया जाता है कि 19 में से 13 ऐसे विधायकों ने भाजपा में शामिल होने के प्रति अपनी हिचकिचाहट जता दी है। 6 कैबिनेट मंत्रियों सहित 19 विधायकों को 9 मार्च से बेंगलूरू के रिजार्ट में रखा गया है। ऐसा माना जा रहा था कि वे सभी बिना किसी चूं-चपड़ के सिंधिया के पीछे-पीछे भाजपा में दौड़े चले आएंगे लेकिन मामला बहुत खुश होने वाला नहीं है। कांग्रेस ने दावा किया है कि इसमें से 13 विधायकों ने कहा है कि वे किसी और पार्टी में शामिल नहीं होंगे। कमलनाथ सरकार गिराने के भाजपा के इरादों पर पानी फेरने में लगे कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने दावा किया कि ये 13 विधायक कांग्रेस नहीं छोडऩा चाहते, उन्हें तो नेतृत्व पर यह दबाव बनाने के लिए साथ लपेट लिया गया कि सिंधिया को राज्यसभा सदस्य बनाया जाए। इन 13 विधायकों में 2 कैबिनेट मंत्री भी हैं।
समर्थक विधायक बोले-सिंधिया नई पार्टी बनाएं
जानकार सूत्रों का यह भी कहना है कि सिंधिया समर्थक विधायकों ने उन पर जोर दिया है कि वह एक नई पार्टी का गठन करें। इन विधायकों का कहना है कि वे उनके (सिंधिया) साथ हैं, न कि भाजपा के। सिंधिया ने इस बारे में अपनी तरफ से कोई बात नहीं कही है।