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Weekly News Roundup Dhanbad: मिड-डे मिल में झोल ही झोल, विश्वास नहीं तो स्कूल जा चखकर देखिए

हॉस्टल में अच्छी कमाई है। अपने शहर में पढ़ने और नौकरी के लिए आने वाली महिलाओं की संख्या खूब है।

धनबाद। धनबाद का मध्य विद्यालय धैया। दोपहर का एक बज रहा है। बच्चे कतार में बैठकर जल्दी जल्दी भोजन कर रहे हैं। कर क्या रहे निगल रहे हैं। भोजन में क्या है जान लीजिए, दाल-भात और सब्जी का झोल। विद्यालय में भोजन योजना का मकसद बच्चों को विद्यालय लाना व उनकी सेहत का ख्याल रखना था। यहां भी झोल हो गया। न पोषण न आकर्षण। बच्चों को भी मालूम है कि सरकार उनके भोजन के लिए रकम देती है। वे भी समझ रहे हैं कि झोल से क्या खेल हो रहा है। मेन्यू में एक दिन अंडा, एक दिन फल और शेष दिन दाल-भात, सब्जी देने का नियम है। ताकि बच्चों को ऊर्जा के रूप में पर्याप्त कैलोरी प्राप्त हो। ऐसा ही मेन्यू बनाया गया कि उन्हें १६ ग्राम प्रोटीन जरूर मिले। जो भोजन मिल रहा, वह कुछ और संदेश दे रहा, बच्चे नहीं कोई और हो रहा है पोषित।

इंतहा हो गई इंतजार की…

अक्सर ये गीत वह गुनगुनाते हैं जब किसी के इंतजार में आंखें पथराने लगें। कुछ ऐसा ही वाकया शिक्षा विभाग के दुमका वाले बड़े साहब के साथ हो गया। दलबल के साथ पूरी ठसक से धनबाद आए। डिनोबिली समूह के आठ स्कूलों की जांच करनी थी। कई मसले थे। डीईओ कार्यालय में आकर जम गए। सोचा यहां पहले से स्कूल वाले इंतजार कर रहे हैं। पर, यहां पहुंचे तो भक्क रह गए। कोई नहीं था, अब काम था तो बैठ गए, शुरू हो गया इंतजार। जो होना था वह हुआ, स्कूल की ओर से कोई झांका तक नहीं। और तो और आए नहीं तो कोई बात नहीं, कोई कारण तो बता ही देना था, आखिर कुछ औपचारिकताएं तो होती ही हैं। वह भी नहीं बताया। साहब का पारा चढ़ गया है। बात सही भी है, साहब की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय जांच समिति गठित हुई थी। अन्य अधिकारी भी आए थे। सभी को इंतजार था कि विभिन्न ङ्क्षबदुओं पर समूह के आठ स्कूलों से जवाब तलब करेंगे। सो अन्य अधिकारियों ने भी साहब गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंचा दिया। अंतत: आठ पन्ने का शिकायतनामा प्रबंधन के खिलाफ लिख दिया गया।

साहब का जुगाड़ तंत्र फेल 

विश्वविद्यालय वाले साहब परेशान हैं। यही गुनगुना रहे हैं, ऐसे वैसे को दिया है, यहां भी परमानेंट दिला दे। उनका गीत गाना जायज है। दिमाग लगाया था कि दो लोगों का कल्याण करा देंगे। नया विश्वविद्यालय है। दो अहम पदों पर जुगाड़ तंत्र का सहारा लेकर काम दे दिया। काम शुरू हुआ तो पर्दा उठने लगा। माहौल बेहतर होने की जगह खराब होने लगा। कर्मचारी आंखें तरेरने लगे, छात्र भी लाल। हर ओर नाखुशी। एक ही आवाज जुगाड़ तंत्र नहीं चाहिए। काम नहीं चलेगा। साहब बड़े पद पर हैं, सो समझदारी खूब है। भांप गए तो मैनेज करने की कोशिश की। पर, अब पानी सिर से ऊपर हो रहा था। सो बात नहीं बनी तो हथियार डाल दिए । जुगाड़ तंत्र से तौबा करने का पूरा मूड बनाया। मन कड़ा कर दो परमानेंट पदाधिकारी बहाल करने का पत्र महामहिम को भेज दिया।

मोहतरमा की पीड़ा

हॉस्टल में अच्छी कमाई है। अपने शहर में पढ़ने और नौकरी के लिए आने वाली महिलाओं की संख्या खूब है। उनको भी छत चाहिए। बस हॉस्टल खुल रहे हैं। जैसे बारिश में कुकुरमुत्ते। जहां महिलाएं रहेंगी वहां सुरक्षा जरूरी है। पर, हॉस्टल संचालकों को नगदऊ चाहिए, सुरक्षा गई भाड़ में। ऐसे हॉस्टल कहां हैं, कितनी लड़कियां हैं, यह जानकारी समाज कल्याण विभाग, नगर निगम और प्रशासन को भी नहीं है। एक हॉस्टल में रह रही मोहतरमा को यह परिस्थिति बेहद खली। सो संचालक से तो कुछ न बोलीं, सहेलियों से अपनी पीड़ा बताती हैं कि शहर की अजब माया है। यहां कोई नियम नहीं है। हमें बताया था हॉस्टल संचालक महिला है, जब आकर रहने लगी तो महाशय संचालक निकले। नियमानुसार चरित्र एवं स्वास्थ्य प्रमाण पत्र लेकर महिला छात्रवास में वार्डन की नियुक्ति हो। पुलिस निरीक्षण करे। सबका पहचान पत्र हो। यहां तो कुछ नहीं। धन्य है धनबाद का प्रशासन।

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