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दक्षिण भारत में नए चुनावी समीकरण के संकेत; तीनों चुनावी राज्यों में भाजपा मजबूत हो रही और कांग्रेस कमजोर

दशकों पूर्व राष्ट्रीय राजनीतिक दल के रूप में पहचान और वर्चस्व कायम कर चुकी भारतीय जनता पार्टी को दक्षिण में अभी तक वह जमीन हासिल नहीं हो सकी है, जो उसे उत्तर में प्राप्त है। हालांकि कर्नाटक में अवश्य भाजपा की सरकार है और इससे पूर्व भी वहां पार्टी सत्ता में आ चुकी है, लेकिन आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पुडुचेरी, तमिलनाडु और केरल में भाजपा गठबंधन सत्ता तक नहीं पहुंच पाई है।

वैसे भारतीय जनता पार्टी के लिए सबसे सुखद खबर पुडुचेरी से आती हुई दिख रही है। यहां उसके गठबंधन की सरकार बन सकती है। केरल में कांग्रेस के लिए खतरा तात्कालिक नहीं है, दीर्घकालीन अवश्य है। केरल में जमीनी स्तर पर भाजपा और वाम कार्यकर्ता एक दूसरे से भिड़े नजर आ रहे हैं। ध्रुवीकरण की स्थिति में अगर कांग्रेस वामपंथी गठबंधन के हाथों सत्ता से लंबे अरसे के लिए बेदखल होने की वजह से वहां अपने कार्यकर्ताओं को संरक्षण देने की स्थिति में नहीं रही और भाजपा ने ईसाई मतदाताओं के एक हिस्से में सेंधमारी कर ली तो वहां भगदड़ मच सकती है।

पुडुचेरी में बदलाव की बयार

पुडुचेरी में चुनाव से ठीक पहले भाजपा के राजनीतिक हमले से कांग्रेस हतप्रभ थी। उसे होश में आने में वक्त लगा। तब तक भाजपा और उसके गठबंधन ने सुब्रमण्यम भारती और वेट्री वेल (भगवान कार्तिक के भाले) जैसे असरकारी तमिल प्रतीकों का भरपूर इस्तेमाल चुनावी बढ़त हासिल करने के लिए किया। कांग्रेस में भगदड़ के हालात थे। उसके तमाम बड़े नेताओं ने भाजपा का दामन थाम लिया। इसका असर ऐसा रहा कि डीएमके के साथ तालमेल में कांग्रेस अपने पिछले विधानसभा चुनावों के प्रदर्शन को सामने रखकर सौदेबाजी नहीं कर सकी। उसे डीएमके को पहले के मुकाबले ज्यादा सीटें देनी पड़ीं, जबकी डीएमके का स्ट्राइक रेट पिछले चुनाव में कांग्रेस के मुकाबले खराब था। चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस की सरकार चली गई थी, पर बर्खास्तगी के बाद भी वैकल्पिक सरकार नहीं बनी थी। इसको लेकर एक सहानुभूति कांग्रेस के पक्ष में थी, परंतु इसका फायदा कांग्रेस उठाती नहीं दिख रही है। उसका चुनाव प्रचार भाजपा के मुकाबले कहीं नहीं टिकता दिख रहा है। वैसे भाजपा की राजनीतिक किस्मत एनआर कांग्रेस के हाथ में होगी। चौक-चौराहों से लेकर गलियों-मोहल्लों तक चर्चा के बीच एनआर कांग्रेस के मजबूत होने की चर्चा सबसे ज्यादा है।

रंगास्वामी की छवि जमीनी नेता की 

दरअसल रंगास्वामी की छवि जमीनी नेता की है। तमाम आरोपों के बावजूद उनकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं दिखती है। भाजपा के शून्य से इस स्थिति में आने में उसकी दीर्घकालीन रणनीति का योगदान सबसे ज्यादा है। बात तभी से प्रारंभ हो गई थी जब नम:शिवाय की दावेदारी को खारिज कर नारायणस्वामी को मुख्यमंत्री बनाया गया था। वे काउंडर समुदाय से आते हैं जिनका यहां काफी राजनीतिक वर्चस्व है। इस बार नम:शिवाय और रंगास्वामी दोनों के एक ही पाले में होने के कारण निश्चित तौर पर इस समुदाय का वोट अधिकतर वहां जाएगा। भाजपा के राजनीतिक मुकाबले में आने से पुडुचेरी में शहरी गैर तमिल बिरादरी को भी एक विकल्प मिलेगा, जो उनके पक्ष में गोलबंद हो सकता है।

नई दीर्घकालीन रणनीति

वर्तमान में पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों ने एक बात साफ तौर पर जाहिर की है कि भारतीय जनता पार्टी राजनीतिक रणनीति तैयार करने के मामले में अपने विरोधियों के मुकाबले दो कदम आगे रहती है। अमेरिका और रूस के चुनावों में विदेशी हस्तक्षेप द्वारा चुनाव प्रभावित करने की बात आरोपों में सामने आई थी, लेकिन राज्यों के विधानसभा चुनावों में विदेशी घटनाओं और विदेश नीति का इस्तेमाल किया जा सकता है, यह बात इस चुनाव में दिख भी रही है। पूर्व में भाजपा के बागी नेता जसवंत सिंह के पक्ष में सिंध के एक प्रसिद्ध धार्मिक नेता फतवा जारी कर चुके हैं जिसके अनुयायी राजस्थान में भी बड़ी संख्या में हैं। इस बार मतुआ समुदाय के मामले में यह इस्तेमाल दूसरे छोर से होता दिखा है। दरअसल भारतीय उपमहाद्वीप के सभी देशों (कृत्रिम राजनीतिक निर्मित) की नियति एक दूसरे से काफी हद तक जुड़ी हुई है। एक देश के सत्ताधारी राजनीतिक दल की समस्या दूसरे देश के सत्ताधारी राजनीतिक दल के लिए अवसर की तरह हो सकती है। बंगाल के चुनावों में प्रधानमंत्री पर इस तरह का आरोप भी लगा कि उन्होंने अपने बांग्लादेश दौरे का इस्तेमाल बंगाल चुनाव में मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए किया। हालांकि भारतीय प्रधानमंत्री के बांग्लादेश दौरे के विरोध में हुई हिंसा के बीच एक खबर जो गुम सी रह गई, वह यह कि वहां के ईसाई समुदाय ने इस हिंसा की निंदा की है।

जॉन कुमार जैसे कई ईसाई नेताओं ने भाजपा का हाथ थाम लिया है

इधर पुडुचेरी में भी जॉन कुमार जैसे कई ईसाई नेताओं ने भाजपा का हाथ थाम लिया है। केरल के चुनावों में भाजपा अपना पूरा दमखम लगा रही है। चुनाव नतीजों को लेकर सभी इस बात पर लगभग सहमत हैं कि इस बार केरल में भाजपा की ताकत बढ़ने वाली है। भाजपा ने अपनी रणनीति बनाते समय शुद्ध राजनीतिक फायदे को सामने रखा है। उसके निशाने पर वामपंथी सत्ताधारी गठबंधन से कहीं अधिक कांग्रेस नेतृत्व वाली यूडीएफ है। वह वायनाड में आक्रामक अभियान चलाते हुए कांग्रेस के मनोबल को भारी नुकसान पहुंचाना चाहती है। वायनाड एक ऐसा जिला है जहां हिंदू, मुस्लिम और ईसाई के संयुक्त संख्याबल के मुकाबले कमजोर है। भाजपा इस आरोप का भी फायदा उठा रही है कि केरल कांग्रेस (एम) के एलडीएफ खेमे में जाने के बाद यूडीएफ खेमे में आइयूएमएल के जरिये मुस्लिमों का वर्चस्व बढ़ा रहा है। छोटे ईसाई समूहों में उपेक्षा का भाव रहा है।

केरल के लिए अलग रणनीति

केरल की साख भारत में पढ़े-लिखे प्रगतिशील राज्य के रूप में है। इसलिए राजनीतिक पार्टयिों की धारणा रही है कि धार्मिक भावना को उभारने वाली बातों का असर यहां के मतदाताओं पर नहीं होता है, इसलिए वे इसे उठाने से परहेज करती रही हैं। परंतु भारतीय जनता पार्टी की जमीनी राजनीतिक हकीकतों की पहचान करने की क्षमता अन्य राजनीतिक पार्टयिों के मुकाबले कहीं बेहतर है। जहां दूसरी पार्टयिां हिचक जाती हैं, वहां भाजपा बेखौफ होकर आक्रामक तेवर अपनाती रही है। इस बार भाजपा ने अपनी रणनीति में मुस्लिम और ईसाई मतों के एकमुश्त रूप में एक पाले में जाने से रोकने की रणनीति अपनाई है, क्योंकि हिंदू वोट जहां तीनों पार्टयिों को मिलते हैं, वहीं यह माना जाता रहा है कि मुस्लिम वोट एकमुश्त रूप से पड़ते रहे हैं। केरल में मुस्लिम (26.6 फीसद) और ईसाई (18.4 फीसद) साझे रूप से हिंदुओं की आबादी (लगभग 55 फीसद) से बहुत कम नहीं रहे हैं।

हैगा-सोफिया मस्जिद का मुद्दा भी उठाया

इसलिए भारतीय जनता पार्टी ने इस मुद्दे को काफी प्रखरता से उठाया है कि केरल की आबादी में हिंदुओं का हिस्सा जहां लगातार घट रहा है, वहीं मुस्लिमों की आबादी लगातार बढ़ रही है। जबकि इस राज्य के मुस्लिम देश के अन्य राज्यों के मुस्लिम की अपेक्षा ज्यादा पढ़े-लिखे और संपन्न हैं। परंतु यहां भी उन्होंने इस बात का ख्याल रखा है कि मुस्लिमों को निशाने पर लेते समय मुस्लिम और ईसाई दोनों को एक साथ आने की स्थिति बनने नहीं दी है। इसलिए केरल में लव जिहाद का मुद्दा उठाते हुए उसे हिंदू बनाम मुस्लिम की बजाय ईसाई बनाम मुस्लिम बनाया है। साथ ही, भाजपा ने केरल में तुर्की में हाल के दिनों में चर्चित हुए हैगा-सोफिया मस्जिद का मुद्दा भी उठाया है, ताकि मुस्लिम बनाम ईसाई का मुद्दा बन सके। इस राज्य में चुनाव परिणाम के संदर्भ में अलग-अलग राजनीतिक विश्लेषकों का अलग-अलग विश्लेषण है, लेकिन इतना तय है कि वामपंथी गठबंधन ने यदि कांग्रेस के खिलाफ भाजपा के साथ रणनीतिक तरीके से सहयोग किया तो नतीजे आश्चर्यजनक हो सकते हैं।