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निशाने पर थे दहशतगर्त पर उधर आफत में थी बेटी, सेना ने किया कुछ ऐसा कि सब कर रहे सराहना

श्रीनगर : भारतीय सेना यूं ही अपने आप में मिसाल नहीं है। सामने कितना भी संकट हो लेकिन आवाम की सुरक्षा को तवज्‍जो देते हुए आगे बढ़ती है। अनंतनाग में सेना ने ऐसी मिसाल कायम कर दी कि उसके आलाेचक भी मुरीद हुए बिना नहीं रहे। यहां एक बीमार बच्ची की जान बचाने के लिए जवानों ने आतंकियों को मारने का अभियान टाल दिया।

पूरा घटनाक्रम यूं पढि़ए। अनंतनाग जिला मुख्यालय से दूर पहाड़ों की तलहटी में स्थित करालखुड में बीते शनिवार को आतंंकियों की भनक लगते ही सुरक्षाबलों ने घेराबंदी कर ली। आतंकियों को बिल से बाहर निकालने के लिए घेराबंदी और कड़ी की जा रही थी कि अचानक एक मकान से दो आदमी बाहर निकले, जवानों ने बंदूकें सीधी करते हुए अंगुलियां ट्रिगर पर रख लीं। दोनों आदमी हाथ उठाए धीरे-धीरे आगे बढ़े और पोजीशन लिए जवानों के पास पहुंचे। उन्होंने बताया कि एक लड़की बहुत गंभीर बीमार है। बस क्या था… वायरलेस पर संदेश गूंजा- कोई फायर नहीं करेगा, सब अपनी पोजीशन पर रहें, ऑल स्टेशन्स ऑन होल्ड।

कुछ ही देर में गांव में एक सैन्य वाहन दाखिल हुआ। उसमें सैन्य डाक्टर कैप्टन संजय शर्मा जरूरी सामान और जवानों के साथ थे। वह बीमार 11 साल की बच्ची की जान बचाने के लिए फरिश्ता बनकर आए थे। डाक्टर के आने के साथ ही जवानों ने गांव में तलाशी अभियान बंद कर दिया ताकि इलाज में कोई खलल न पड़े। सेना की एक-आरआर के साथ अटैच कैप्टन संजय शर्मा ने कहा कि जब मैं मकान में दाखिल हुआ तो वहां फर्श पर एक बच्ची तेज बुखार से कांप रही थी। नाड़ी भी तेज चल रही थी और उसे कोई दौरा पडऩे का भी संकेत मिल रहा था। उसकी जांच की तो पता चला कि उसे दौरा भी पड़ा है। मैंने उसे दवा दी।

कुछ देर में उसकी हालत स्थिर दिखी। इसके बाद अभिभावकों से उसे अस्पताल ले जाकर किसी न्यूरोलोजिस्ट को दिखाने की सलाह दी। मूलत: पटियाला, पंजाब के रहने वाले कैप्टन संजय शर्मा ने कहा कि कश्मीर में ग्रामीणों के लिए कई बार अस्पताल पहुंचना मुश्किल हो जाता है। ऐसे हालात में वह सेना के डाक्टरों पर ही ज्यादा भरोसा करते हैं।

बच्ची की जान कीमती थी

सेना की एक-आरआर के कर्नल कपिल मोहन सहगल ने कहा कि शनिवार की शाम हमारे लिए बहुत चुनौती भरी थी। मौसम भी खराब था। गांव में आतंकियों की मौजूदगी की सूचना थी। घेराबंदी कर ली गई थी। तलाशी अभियान जारी था। किसी को घर से बाहर न निकलने हिदायत थी। ऐसे में दो आदमी अचानक घर से निकले। उनके घर में एक बच्ची गंभीर रुप से बीमार थी। खैर, उस समय हमारे लिए आतंकियों से ज्यादा वह बच्ची की जान बचान अहम था। आतंकी आज नहीं तो कल मारे जाएंगे। हमने यह सोचकर अपना अभियान स्थगित कर दिया। उन्होंने कहा कि आतंकियों का खात्मा हमारा एजेंडा है, लेकिन उससे भी ज्यादा बड़ी जिम्मेदारी निर्दाेष की जान की हिफाजत करना है।

अभियान स्थगित करने का अफसोस नहीं

दक्षिण कश्मीर में आतंकरोधी अभियानों के लिए जिम्मेदारी संभालने वाली सेना की विक्टर फोर्स के जीओसी मेजर जनरल रश्मि बाली ने कहा कि मुझे इस अभियान के स्थगित होने का कोई अफसोस नहीं है। तलाशी अभियान रोका जा सकता है, लेकिन किसी निर्दाेष की जान को संकट में नहीं डाला जा सकता। जवानों और अधिकारियों ने हालात की संवेदनशीलता के मद्देनजर सही फैसला लिया है।