घोटाले दबाने में भी घोटाला, पढ़ें डीएमसी में ACB जांच का सच
धनबाद। कुछ तो बात है इस पैसे में। ऐसे ही कोई दिवाना नहीं होता। चलिए शुरू से शुरू करते हैं। 14वें वित्त आयोग में नगर निगम को 396 करोड़ रुपये मिले। सबसे अधिक पैसा इंटीग्रेटेड सड़क पर खर्च होना था। एस्टीमेट बना, कमीशन का दौर भी चला। सड़क की जितनी लागत नहीं उससे अधिक का प्राक्कलन बन गया। ओवर एस्टीमेट में 156 करोड़ का भुगतान भी हो गया। लगभग 200 करोड़ का वारा न्यारा हुआ। रेवड़ी बंटी, लेकिन किसी एक को नहीं मिली। ऊपर शिकायत पहुंची। जांच टीम आ धमकी। तय हुआ कि 10-12 लाख में मामला सेट हो जाएगा। उगाही शुरू हो गई। टीम के हत्थे लाख-पचास हजार पहुंचा। बाकी बंदरबांट। फिर क्या था जैसा दिखा वैसी रिपोर्ट पेश। अब तो सूबे के मुखिया ने ही 200 करोड़ की जांच बैठा दी। दस लाख के चक्कर में 200 करोड़ की कुल्हाड़ी अपने पैर दे मारी।
बुखार में कोई मिठाई लेता है
पंडित क्लीनिक रोड के सोनू बाबू मिठाइयों के बेहद शौकीन। ड्यूटी से फारिग होकर सिटी सेंटर की मिठाई दुकान में रसगुल्ले लेने पहुंच गए। बाहर खड़े एक बूढ़े व्यक्ति ने पिस्तौल स्टाइल में थर्मल स्कैनर सिर पर टिका दिया। रीडिंग देखते बूढ़ा जोर से चिल्लाया, एक सौ चार। यह सुनते ही कर्मचारी इधर उधर भागने लगे। सोनू बाबू को ऐसे घूर रहे थे, मानो साक्षात कोरोना हो। समझ गए अब तो ये क्वारंटाइन सेंटर भिजवा कर ही दम लेंगे। दोनों हाथ हवा में लहराते हुए दम से चिल्लाए, नाटक बंद करो। एक सौ चार बुखार में भला कोई मिठाई लेने आता है? मशीन खराब है। धूप से आ रहा हूं, थोड़ा गरम तो हो ही गया हूं। पहले अपने स्टाफ का नापो, फिर मेरा। दो स्टाफ का तापमान मापा गया, 97 डिग्री। फिर सोनू बाबू का मापा गया, 98 डिग्री। सबने राहत की सांस ली।
सड़क पर सब्जी बेचती तीरंदाज
कोरोना ने कई रंग दिखा दिए। कोई बदहाली पर रोता रहा। तो कोई घर की कैद से निकलने को बेचैन दिखा। ऐसे लोगों से भी वास्ता पड़ा, जिनके सपने बिखरते नजर आए। झरिया की एक सड़क पर राष्ट्रीय स्तर की तीरंदाज सब्जी बेचती दिखी। सोनू का सपना अपने देश के लिए मेडल लाना है। राष्ट्रीय विद्यालय तीरंदाजी प्रतियोगिता में पदक जीता। राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में भी कई पदक अपने नाम किए। वक्त ने क्या खूब करवट ली। धनुष क्या टूटा सपना भी जैसे टूट गया। परिवार का पेट पालने के लिए सब्जी बेचने पर मजबूर हो गई। कुछ लोगों की इंसानियत अभी जिंदा है। बात सूबे के मुखिया तक पहुंची। अभी तक कुंभकर्णी नींद में रहा प्रशासन भी हरकत में आ गया। आनन-फानन में धनुष के लिए सहायता दे डाली। आगे भी मदद का आश्वासन मिला। अब सोनू का सपना साकार होते देखना बाकी है।
कभी तरसे कभी बिन बादल बरसे
शहरी क्षेत्र में पानी सप्लाई का जिम्मा पेयजल विभाग के पास है। बाकायदा 19 जलमीनार हैं। इनसे हर इलाके में पानी की आपूर्ति होती है। कोई दिन ऐसा नहीं बीतता जब टंकी खाली न रह जाए। एक टंकी का खाली होना मतलब 20 से 25 हजार की आबादी प्यासी। इन दिनों मटकुरिया जलमीनार चर्चा में है। बड़ी आबादी इस पर निर्भर है। हर दूसरे दिन टंकी सूख जाती है। कभी-कभी तो ऐसा ओवरफ्लो कि पूरा इलाका जलमग्न। बीते दो वर्षों से ऐसा ही होता आ रहा है। हर दूसरे दिन पानी खत्म तो कुछ दिन बाद जलमग्न। स्थानीय लोग शिकायत कर-करके थक चुके हैं। साहब लोगों के कान पर जूं तक नहीं रेंग रहा। तीन दिन पहले की बात है। डेढ़ लाख गैलन पानी बह गया। पाक श्मशान घाट इसमें डूब गया। अंतिम संस्कार करने पहुंचे लोगों को लंबा इंतजार तक करना पड़ा।