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सरकार को पेट्रोल और डीजल पर ऊंचे करों से अर्जित राजस्व का उपयोग सार्वजनिक परिवहन विस्तार के लिए करना चाहिए !

देश में इन दिनों पेट्रोल-डीजल जैसे पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में लगातार हो रही बढ़ोतरी को लेकर लोगों द्वारा आक्रोश व्यक्त किया जा रहा है। लोग इस बात को लेकर सवाल उठा रहे हैं कि जब पिछले पांच वर्षों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम 40 से 70 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल के बीच में रहे हैं, फिर भी ऐसी स्थिति क्यों कायम है? उसमें भी पिछले वर्ष तो कच्चे तेल के दाम काफी नीचे चले गए थे। असल में देश में पेट्रो उत्पादों की ऊंची कीमतों का एक बड़ा कारण केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा उन पर लगाए गए कर हैं। यहां तक कि पिछले वर्ष बेहद निचले स्तर पर पहुंचे कच्चे तेल के दाम के बावजूद सरकार ने पेट्रो उत्पादों पर टैक्स बढ़ाकर घरेलू बाजार में उनके दाम पूर्ववत बनाए रखे। उसके बाद से अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम बढ़ने का सिलसिला जारी है।

आम आदमी के लिए छोटा सा बोझ भी बहुत भारी पड़ता है

अब सरकार उस पर टैक्स नहीं घटा रही है। यही कारण है कि घरेलू बाजार में तेल के दाम ऊंचे हैं। आम उपभोक्ता की दृष्टि से यह सही नहीं दिखता, लेकिन गहराई में पड़ताल करने से इसके विभिन्न आयाम दिखाई पड़ेंगे। जहां तक विभिन्न वर्गों पर इसके प्रभाव का प्रश्न है तो ऐसे उपभोग के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। अफ्रीकी देश माली के ऐसे आंकड़े जरूर मुझे मिले। माली में निम्न आय वर्ग की 20 प्रतिशत जनता यदि एक रुपये का तेल खरीदती है तो उच्च वर्ग की 20 प्रतिशत जनता 16 रुपये का तेल खरीदती है। यानी तेल के दाम बढ़ेंगे तो उच्च वर्ग पर उसका अधिक भार पड़ेगा। अपने देश की स्थिति भी कमोबेश ऐसी ही है, परंतु हमें यह भी स्वीकार करना पड़ेगा कि आम आदमी के लिए छोटा सा बोझ भी बहुत भारी पड़ता है। उसकी भरपाई कैसे होगी, हमें यह भी विचार करना होगा।

पेट्रोलियम उत्पादों के मूल्यों में वृद्धि के कई अप्रत्यक्ष लाभ

पेट्रोलियम उत्पादों के मूल्यों में वृद्धि के कई अप्रत्यक्ष लाभ भी हैं। पहला लाभ तो यही है कि इससे तेल की खपत कम होती है, क्योंकि तमाम लोग निजी वाहन के स्थान पर सार्वजनिक परिवहन या साझा वाहनों का उपयोग करने लगते हैं। कंपनियां ऊर्जा खपत के लिहाज से बचत करने वाले उपकरण लगाने लगती हैं। इसके दीर्घकालिक फायदे होंगे। चूंकि हम अपनी खपत का अधिकांश तेल आयात करते हैं तो विदेशी मुद्रा की बचत होगी। दूसरा फायदा वैकल्पिक ऊर्जा के माध्यमों का प्रसार होगा जिससे पर्यावरण संरक्षण को बल मिलेगा।

पेट्रोलियम उत्पादों के दाम बढ़ने से लोग बिजली से चलने वाली कार को देंगे तरजीह

इसमें संदेह नहीं कि पेट्रोलियम उत्पादों के दाम बढ़ने से लोग ऊर्जा के दूसरे स्नोतों और संसाधनों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। जैसे पेट्रोल के दाम अधिक हों तो लोग बिजली से चलने वाली कार खरीदने को तरजीह देंगे। उद्यमी अगर ऊर्जा के लिए पेट्रो उत्पादों पर निर्भर है तो संभव है कि वह बढ़ते दामों की स्थिति में सौर ऊर्जा जैसे अक्षय स्नोतों का रुख करे। ऐसा करने से तेल पर हमारी निर्भरता और खपत उत्तरोत्तर कम होगी। परिणामस्वरूप पर्यावरण को भी राहत मिलेगी, जिसका संरक्षण समकालीन दौर की एक बड़ी चुनौती बन गई है। स्मरण रहे कि प्रकृति द्वारा जो सेवाएं या सौगात उपलब्ध कराई जाती हैं उनका सीमित मात्रा में ही उपयोग उचित है। तेल के उपयोग से भारी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन होता है।

तेल के साथ-साथ कोयले की खपत कम करनी होगी और सौर ऊर्जा को देना होगा बढ़ावा

लिहाजा हमें तेल के साथ-साथ कोयले की खपत कम करनी होगी और सौर ऊर्जा को बढ़ावा देना होगा। इससे कार्बन उत्सर्जन और ग्लोबल र्वांिमग के कारण प्रकृति पर जो दबाव बढ़ रहा है उससे कुछ छुटकारा मिलेगा। ग्लोबल र्वांिमग के कारण ही प्रतिकूल मौसमी परिघटनाएं आपदाओं का कारण बन रही हैं। उनसे जान-माल की अपार क्षति होती है। बीते दिनों उत्तराखंड के चमोली जिले में हुई त्रासदी इसका ताजा उदाहरण है। ऐसे में इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि तेल की मूल्यवृद्धि से आम आदमी पर पड़ने वाले भार की तुलना में पर्यावरण संरक्षण से उसे कितना लाभ होता है। मेरा आकलन है कि इससे लाभ और हानि का कांटा बराबर हो जाएगा।

तेल के बढ़ते दामों पर हायतौबा मचाने के बजाय निर्भरता घटाना चाहिए

इस बीच हमें कई मामलों में सावधानी बरतने की भी आवश्यकता है। जैसे तेल के दाम बढ़ने की स्थिति में हमें मक्का या एथेनॉल से पेट्रोल नहीं बनाना चाहिए। न ही अपनी नदियों पर हद से ज्यादा बांध बनाकर जलविद्युत परियोजनाएं लगानी चाहिए। इसके पीछे कारण यही है कि जब हम एथेनॉल से पेट्रोल बनाते हैं तो इस प्रक्रिया में अपने बहुमूल्य पानी और भूमि को एथेनॉल में  परिवर्तित करके उसे भस्म कर देते हैं। इसी प्रकार जल विद्युत परियोजनाओं के कारण मछलियों, जंगलों, जैव विविधता और नदियों के मुक्त बहाव को अवरुद्ध करके पर्यावरणीय दुष्प्रभावों को आमंत्रित कर लेते हैं। इसका खामियाजा कभी न कभी किसी रूप में हमें ही भुगतना पड़ता है। इसलिए हमें तेल के बढ़ते दामों पर हायतौबा मचाने के बजाय उस पर निर्भरता घटाकर दूसरे श्रोतों को भुनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

पेट्रोल-डीजल पर कर की ऊंची दरों से अर्जित राजस्व का उपयोग सार्वजनिक परिवहन पर किया जाए

पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दामों पर सरकार की आलोचना इस बिंदु पर होनी चाहिए कि उन पर कर की ऊंची दरों से अर्जित राजस्व का उपयोग सार्वजनिक परिवहन के विस्तार के लिए किया जाए। जैसे सरकार ने हाईवे बनाए हैं जो एकदम सही है, पर इन हाईवे पर बसें कम और निजी वाहन ज्यादा चलते हैं। बस की सुविधा सुलभ होनी चाहिए। महानगरों में मेट्रो का विस्तार और तीव्रता से होना चाहिए जिससे लोगों को निजी वाहनों का उपयोग घटाने के लिए प्रेरित किया जा सके। ऊर्जा की हमारी मौजूदा खपत टिकाऊ नहीं है। हम लाखों-करोड़ों वर्षों से प्रकृति के गर्भ में समाहित कोयले और तेल का दोहन करके उसे जल्द से जल्द खत्म करने पर आमादा हैं। इस प्रकार हम अपनी ही धरोहर को नष्ट कर रहे हैं।

कोरोना संकट के कारण सरकारी राजस्व पर दबाव बढ़ा

कोरोना संकट के कारण सरकारी राजस्व पर दबाव बढ़ा है। पेट्रो उत्पादों पर कर की दरें न घटाने को लेकर सरकारी स्तर पर हिचक का एक बड़ा कारण यह दबाव भी है। कोरोना ने सभी को प्रभावित किया है। तमाम लोगों की रोजी-रोटी छिन गई। वहीं सरकारी कर्मियों के वेतन-भत्तों पर उतना असर नहीं पड़ा। ऐसे में सरकार अपने राजस्व खर्च को भी तार्किक बनाने पर विचार करे। साथ ही तेल से होने वाली कमाई का इस्तेमाल केवल सरकारी खपत को पोषित करने के लिए नहीं करना चाहिए। उससे उपार्जित आय का सदुपयोग सार्वजनिक यातायात को प्रोत्साहन देने पर करना होगा। साथ ही अनावश्यक सरकारी खर्चों में कटौती भी करनी होगी। तभी हम तीव्र आर्थिक विकास हासिल करने में सक्षम हो सकेंगे।

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