कहीं नहीं मिला ठिकाना तो जेल को ही बना लिया आशियाना
इन लोगों में से अधिकतर का बाहर कोई भी अपना कहने या रहने का कोई आशियाना तक नहीं है.
रांची। जेलों में लगातार बढ़ रही कैदियों की भीड़ चिंता का सबब बन गया है। प्रदेश के प्राय: सभी जेलों में क्षमता से दोगुने कैदी को रखा जा रहा है। बड़ी संख्या में ऐसे कैदी भी हैं जो 15-15 साल से जेल में बंद हैं लेकिन निचली अदालत के फैसले को कभी ऊपरी अदालत में चुनौती नहीं दी। कुछ तो कानूनी जानकारी अथवा परिवार द्वारा छोड़ दिये जाने के कारण जेल में पड़े हुए हैं।
इन लोगों में से अधिकतर का बाहर कोई भी अपना कहने या रहने का कोई आशियाना तक नहीं है। डालसा द्वारा किये गए सर्वे में यह बात सामने आई है। कुछ ऐसे हैं जो जुर्म करने के बाद अब किस मुंह से बाहर जाए इसलिए चाहते हैं कि वे यही जेल में ही पड़े रहे। वहीं कुछ का उनके बच्चे व परिवार वालों ने कोई सुध ही नहीं ली। उनका भी मोहभंग हो चुका है, आखिर जाएं तो जाएं कहां। इसलिए वे भी जेल से निकलना ही नहीं चाहते हैं। इस वजह से जेल में कैदियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
जेल की स्थिति को देखते हुए झारखंड राज्य विधिक सेवा प्राधिकार (झालसा) ने तीन जनवरी 2020 को जेल आइजी व रांची, जमशेदपुर, हजारीबाग, दुमका, पलामू, गिरिडीह और देवघर के जिला विधिक सेवा प्राधिकार, डालसा के अध्यक्ष-न्यायायुक्त को पत्र लिख कर बिना ऊपरी अदालत में अपील किए सजा काट रहे कैदियों की पहचान करने को कहा है। कैदियों की ओर से डालसा को ऊपरी अदालत में अपील करने का निर्देश दिया गया है। झालसा के निर्देश पर डालसा व जेल प्रशासन हरकत में है। कैदियों की सूची जुटाई जा रही है।
होटवार में 32 सौ कैदी, 150 ने कहीं नहीं की अपील
होटवार जेल में वर्तमान में 32 सौ कैदी को रखा गया है। इसमें 1570 कैदी सजायाफ्ता हैं। जिन्हें विभिन्न अदालतों ने सजा सुना दी है। इसमें करीब 150 ऐसे कैदी हैं जो निचली अदालत द्वारा सुनाये गए सजा के खिलाफ ऊपरी अदालत में कभी अपील दायर नहीं की है। बाकी अंडर ट्रायल कैदी हैं। इसमें भी 68 सजायाफ्ता कैदी जो पिछले 15 सालों से सजा काट रहे हैं लेकिन निचली अदालत के फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती नहीं दी।
झालसा ने कैंपेन चलाकर अपील दाखिल करने का दिया है आदेश
झालसा ने कैदियों की पहचान के लिए 26 जनवरी से 29 फरवरी तक जेलों में अभियान चलाने को कहा है। प्रत्येक कैदियों की पड़ताल कर इसकी सूची उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया है। जेल प्रशासन और डालसा को मिलकर काम करना है। झालसा की ओर से कहा गया है कि सजायाफ्ता कैदियों को निचली अदालत के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक जाने का हक है। ऐसा कोई कैदी जेल में न रहे जिसे किसी कारण से अधिकार से वंचित होना पड़े। सिविल कोर्ट के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट व हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की जाएगी।
क्या कहना है डालसा सचिव का
झालसा के निर्देशानुसार कैदियों की पहचान की जा रही है। 29 फरवरी तक ऐसे लोगों को ढूंढकर उनसे बात कर सूचीबद्ध किया जाएगा। आखिर वे क्यों यहां हैं और उन्होंने अपने मिले सजा के खिलाफ ऊपरी अदालत में कोई अपील क्यों नहीं दायर की। इनमें से आर्थिक रूप से कमजोर कैदियों को सरकारी खर्च पर अधिवक्ता भी डालसा द्वारा मुहैया कराया जाएगा। -अभिषेक कुमार, डालसा सचिव, रांची।