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नए कृषि कानूनों पर विपक्ष के दुष्प्रचार पर प्रधानमंत्री मोदी ने किया जोर का प्रहार, कहा- आंदोलन राजनीति से प्रेरित है

राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री ने विपक्ष के आरोपों की हवा निकालने के साथ जिस तरह इस पर जोर दिया कि नए कृषि कानून आवश्यक क्यों हैं, उससे आम जनता को यह समझने में और आसानी होनी चाहिए कि कृषि कानून विरोधी आंदोलन की मांगें किस प्रकार देश के आम किसानों के हितों पर चोट पहुंचाने वाली हैं? यह आंदोलन भले ही किसानों के नाम पर चलाया जा रहा हो, लेकिन वास्तव में यह उनके और खासकर छोटी जोत वाले 86 प्रतिशत किसानों के हितों की अनदेखी करने वाला है। यह आंदोलन राजनीति प्रेरित है और इसका मकसद सरकार को नीचा दिखाना है, यह प्रधानमंत्री की इस बात से और स्पष्ट हो जाता है कि इस सवाल का जवाब सामने नहीं आ रहा है कि आखिर यह आंदोलन हो किसलिए रहा है? कुछ इसी तरह की बात कुछ दिनों पहले कृषि मंत्री ने भी की थी। उनका सवाल था कि विपक्ष यह क्यों नहीं बता पा रहा कि कथित काले कानूनों में काला क्या है? इस सवाल का जवाब विपक्षी नेताओं के साथ-साथ किसान नेता भी नहीं दे पा रहे हैं। ले-देकर वे यही घिसा-पिटा और निराधार आरोप उछाल रहे हैं कि न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की व्यवस्था खत्म होने वाली है और नए कृषि कानून उनकी जमीनें छीनने का काम करेंगे। यह अच्छा हुआ कि प्रधानमंत्री ने इस झूठ को बेनकाब किया। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की उस टिप्पणी का जिक्र करके विपक्ष के यू टर्न को भी रेखांकित किया, जिसमें उन अड़चनों को दूर करने की जरूरत जताई गई थी, जिनके चलते किसान अपनी उपज बाजार में नहीं बेच पाते।

यह कहना कठिन है कि प्रधानमंत्री के संबोधन के बाद किसान नेताओं से बातचीत फिर से शुरू होने की सूरत बनेगी या नहीं, क्योंकि कई किसान नेता बात करने के बजाय उससे बचने की राह खोजते दिख रहे हैं, लेकिन इसमें कोई दोराय नहीं कि कृषि कानून विरोधी आंदोलन को शह-समर्थन दे रहा विपक्ष अब और अधिक कमजोर जमीन पर खड़ा नजर आने लगा है। वह जिस तरह राज्यसभा की तरह लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा करने को तैयार हुआ, उससे यह स्वत: स्पष्ट हो गया कि उसके पास इतने दिनों तक हंगामा करते रहने का कोई र्तािकक आधार नहीं था। यदि विपक्षी दल वास्तव में किसानों के हितों को लेकर चिंतित हैं तो फिर उन्हेंं किसान नेताओं को उकसाने के बजाय उन्हेंं सरकार से बात करने के लिए राजी करना चाहिए। उन्हेंं इसकी अनदेखी नही करनी चाहिए कि कृषि कानून विरोधी आंदोलन में वैसे तत्व घुस आए हैं, जिन्हेंं प्रधानमंत्री ने आंदोलनजीवी की संज्ञा दी।