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Ramgarh प्रसिद्ध सिद्धपीठ रजरप्पा में होली का अलग महत्व है

पर्यावरण संतुलन के हिसाब से पलास फूल से रामगढ़ की होली का विशेष महत्व है

Ramgarh:रंगों के त्योहार होली को हमारे देश मे बड़े ही धूम धडाके के साथ मनाया जाता है, वही देश की प्रसिद्ध सिद्धपीठ रजरप्पा की होली का अलग महत्व है । पर्यावरण संतुलन के हिसाब से रजरप्पा की होली का विशेष महत्व है । यहां आज भी पलाश के फुलो से होली खेली जाती है | सदियो पुरानी परंपरा के अनुसार ग्रामीण प्राकृतिक होली मनाते है़ | होली के पूर्व नवजवान लोग जंगल जाते है , जंगल मे पलाश के पेड से फुलो को तोड जमा करते हैं । घर मे लाकर महिलाओ के सहयोग से  पलाश के फुलो को  सुखाते है । फुल  सुखने के बाद उसे मिट्टी के हडीया मे डाल फुलो को गर्म पानी में खौलाते   है , फिर पक्का रंग तैयार हो जाता है और क्या, फिर सुरु हो जाती है प्राकृतिक होली |

गांव के एक बुजुरुग कहते है , हमलोग झारखंड वाशी है, बहुत पुरानी परंपरा है , बुढे लोग इसी रंग से होली खेलते आये , इस वर्ष भी उसी परंपरा के तहत पलाश फुल से होली हम सब खेलेंगे , युवा नेता राजीव जयसवाल ने कहा की हमलोग पलाश के फूल से होली खेलते है ये प्रकृति से जुड़ा रंग है बच्चो को भी हम शिक्षा देते है की पलाश के फुल से होली खेलो, इससे कोई नुकसान नही है ,केमिकल्स द्वारा बनाई गई रंगो से नुकसान है
वही जंगल से पलाश के फुलो को घर मे लाकर रंग बना रहे  एक नव युवक  ने कहा कहां की  हमलोग होली में पुरा गांव टोले मुहल्ले मिलकर मनाते है , हमारे पूर्वज लोग इसी पलाश के फुलो से होली खेलते थे , पलाश के फुलो को जंगल से तोड कर लाये है , इसको सुखायेंगे ,पानी  मे खौलान्गे , इसमे चुना मिलायेंगे   फिर इसको रंग बनायेंगे  , फिर होली खेलेंगे, इस रंग से किसी तऱह का नुकसान शरीर को नही पहुचता है |

वही समाज सेवी व शिक्षा विद प्रोफ़ेसर संजय सिंह ने कहा कि रजरप्पा की होली आदर्श होली है । यहां की होली से पर्यावरण संतुलन की शिक्षा मिलती है । उन्होंने कहा की पलास का फूल राजकीय फूल है इसका धार्मिक और ऐतहासिक महत्व है | पलाश के फूल से बनाए रंग से कोई नुकसान नहीं होता जबकी बाजार के रंगो से कई समस्याए होती है ।

गांव की महिलाओ  ने बताया की जंगल से लाये हुए पलाश के फूलो को इकट्ठा कर हडिया में डाल रंग बनाते है । गांव  के लडको द्वारा लाये हुये पलाश के फुलो को रंग बनाती हुई गांव  की महिलाए कहती है की  मेरी शादी को कई  साल बित गये। मै देखती हुई आ रही हु इस परंपरा में पहले लडके लोग को जंगल भेजते है पलाश के फुल लाने के लिय , फिर इसको सुखाते है , उसके बाद हडीया मे फुलो को उबालते है, इसके बाद रंग तैयार हो जाता है , फिर इसी रंग से होली खेलते है , जो शरीर के लिय लाभदायक होता है ,आज कल का रंग है हानीकारक  होता  है

पलास के फूल की महत्वता के बारे में बताते हुए रजरप्पा मंदिर के पुजारी छोटू पंडा ने कहा कि माँ भगवती का प्रिय फूल पलास फूल है ये फूल माँ पर अर्पित की जाती है प्रकृति की विषेस देन है की हमारे झारखण्ड में पलाश फूल मिलते है ये एक औसधि है इसे होली में रंग के रूप में प्रोयग किया जाता है इससे कोई नुकसान नहीं होता | इससे जल की बर्वादी नहीं हो पाती है । इसलिए होली पलास के फुलो से बनाए रंग से खेले और सुरक्षित रहे।
पलास फूल को प्रकीर्ति की देन बताते हुए वरीय चिकित्सक डॉ अबधेश सिन्हा ने कहा कि पलास के फूल से बने रंग से किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं होता। उन्होंने कहा की  इस प्रकार के होली खेलने से स्वास्थ्य का कोई नुकसान नहीं होता है ।
सदियों पुराणी पलाश के फूलो से  होली खेलने की परम्परा  आज भी गांवो में कायम है । गांव के लोग सादगी और भाईचारे के बिच बदस्तूर पलास फूल के रंग से होली खेलते आ रहे है । आप भी इस प्रकृति के अनमोल तौफे से रंग खेले और अपनी संस्कृति और सभ्यता को बचाते हुए खुद स्वस्थ रहे।
तो आप इस भाई चारगी और प्रेम के इस रंगबिरंगे अनमोल त्योहार होली पर खुद को स्वस्थ रखते हुए अपने नफरत और द्वेष को भुला कर प्यार की गंगा बहाए और अपने राष्ट्र को मजबूत, विकसित और स्वच्छ बनाने का संकल्प ले ।
आप सभी को होली की हार्दिक सुभकामनाएँ ।