ना ढेला ना दमड़ी ना कौड़ी…ये है मोटू और पतलू की जोड़ी; इनके जुगाड़ का जवाब नहीं
रांची। नई सरकार जोर-शोर से बजट की तैयारियों में जुटी है। गरीब से लेकर अमीर तक को खुश करने की कोशिश को सिरे चढ़ाया जा रहा है। इस बीच सियासत भी पूरी तरह गर्म हो गई है। सत्तारुढ़ पार्टी झामुमो की सहयोगी कांग्रेस को पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी का भाजपा में जाना फूटी आंख नहीं सुहा रहा। वहीं बाबूलाल के दो पुराने सहयोगी प्रदीप यादव और बंधु तिर्की उन्हें खूब भा रहे हैं। अब धीरे-धीरे इनकी जोड़ी भी झारखंड के अंदर-बाहर प्रसिद्धि पा रही है।
माननीय की नई जोड़ी
कभी दो माननीयों की जोड़ी झारखंड में खूब मशहूर थी। दोनों पहली बार चुनाव जीतकर आए थे। दोनों को पहली बार ही लालबत्ती मिल गई थी। सरकार बनाने में भी दोनों की जोड़ी खूब बनती थी। दोनों के रात में साथ मिलने की तस्वीर बाहर आ गई तो सरकार में हड़कंप हो जाता था। बाद में इन दो माननीयों की जोड़ी टूट गई। अब इनमें से एक ने नई जोड़ी बना ली है। नई जोड़ी ही नहीं बनाई, एक बड़ी पार्टी में घुसने का जुगाड़ भी बिठा लिया। अब इस नई जोड़ी के पार्टी में आने से कई लोगों का पसीना छूट रहा है। एक माननीय तो खुलकर सामने आ गए हैं। लेकिन जो सामने नहीं आए हैं वे भी अंदर से खुश नहीं हैं। लेकिन बात काफी आगे तक बढ़ गई है। अब देखना है कि यह जोड़ी पार्टी के पुराने लोगों को कितना रास आती है।
आप्त सचिव या ‘आफत’ सचिव
झारखंड में मंत्रियों के आप्त सचिवों के कारनामे खासे चर्चित रहे हैं। पूर्व की सरकारों में किसी के पास करोड़ों के निवेश पकड़े गए तो किसी के घूस मांगते ऑडियो वायरल हुए। इन महानुभावों ने खुद को तो परेशानी में डाला ही, अपने मंत्री की भी खूब किरकिरी कराई। दोआप्त सचिव तो अभी तक न्यायालय का चक्कर लगा रहे हैं। इस बार भी एक आप्त सचिव का क्रियाकलाप विभाग में चर्चा का विषय बना हुआ है। साहब ने अपने लिए दो गाडिय़ों की डिमांड कर दी है। एक स्कार्पियो मिली तो उसे वापस लौटा दी। उन्हें खुली छत की सुविधा वाली एसी गाड़ी चाहिए। चाहे इसे आउटसोर्स ही क्यों नहीं करना पड़े? चर्चा तो यह भी है कि उन्हें यह गाड़ी अपने बच्चों को स्कूल पहुंचाने और वापस लाने के लिए चाहिए। आप्त सचिव पुराने खिलाड़ी हैं, अर्से से इस पर सुशोभित हैं।
निर्माण कार्यों पर नजर
माननीय की नजर निर्माण कार्यों पर है। बड़े विभाग तो मिल गए, लेकिन जहां निर्माण नहीं वहां कोई ‘कामÓ भी नहीं। पिछली सरकार ने विभागों का सारा निर्माण कार्य एक अन्य विभाग को दे दिया था। उस समय कई माननीय मन मसोस कर रह गए थे। मुखिया दबंग थे, सो उनकी एक नहीं चली थी। अब नई सरकार बनी है तो माननीय फिर निर्माण कार्यों को अपने-अपने विभागों में वापस मंगाने में जुट गए हैं। एक मंत्री जी ने बकायदा इसके लिए पत्र भी लिखवा दिया है। अब कोई इतना बेवकूफ नहीं है कि उनका इरादा न समझे। सारे टेंडर-वेंडर तो निर्माण कार्यों में ही होते हैं। मंत्री जी की दलील है कि दूसरे विभागों के माध्यम से निर्माण कार्य होने से उसकी सही मानीटरिंग नहीं होती। अब देखना है कि पुरानी व्यवस्था कायम रहती है या माननीयों का मंसूबा पूरा होता है।
नेताजी का रोजगार
आजकल एक बड़ी पार्टी के छोटे-बड़े कई नेताजी सचिवालय का चक्कर लगा रहे हैं। कुछ तो मंत्री जी के पीछे-पीछे ही चक्कर काट रहे हैं तो कुछ पीछे से पहुंच जाते हैं। कुछ देर एक मंत्री जी को चेहरा दिखाने प्रोजेक्ट भवन में पहुंचे तो थोड़ी देर में दूसरे मंत्री जी के सामने नेपाल हाउस में नजर आते हैं। गेट पर तैनात पुलिस भी परेशान है। किसे रोके या न रोके। घुड़की देते हैं। पहचानते नहीं हो, मंत्री जी के करीबी हैं हम। डर यह भी है कि कहीं मंत्री जी नाराज न हों। मंत्री के क्षेत्रों के कुछ नेताजी तो गेट पर पूछते नजर आते हैं, फलाना मंत्री जी आ रहे हैं या नहीं? इधर, मंत्री जी भी अपने इन नेताओं से कम परेशान नहीं हैं। अब बेचारे करें भी तो क्या करें? कहते हैं, यह तो उन नेताओं का रोजगार है।