नक्सलियों काे नहीं मिल रहा आत्मसमर्पण नीति का लाभ, परिजनों ने लगाई गुहार
ऐसे बंदियों को उनके परिचित वकील उपलब्ध कराया जाय और इसके लिए सरकार भुगतान करे।
रांची। राज्य में आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों-उग्रवादियों के परिजन अब न्याय के लिए दर-दर भटक रहे हैं। उनका कहना है कि जिस वादे के साथ उनके नक्सली रिश्तेदारों का आत्मसमर्पण कराया गया था, उसका लाभ नहीं मिल रहा है। इसका समाधान जरूरी है। सरकार की आत्मसमर्पण नीति के तहत आत्मसमर्पण करने वाले वाले नक्सलियों के परिजन राज्यपाल, मुख्यमंत्री, डीजीपी सहित सभी वरिष्ठ अधिकारियों को आवेदन दे चुके हैं। पुलिस मुख्यालय से उन्हें सलाह दिया गया है कि सभी की समस्या अलग-अलग है, इसलिए सभी अलग-अलग आवेदन दें।
उनके आवेदन पर विचार किया जाएगा। आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों के परिजन की मांग थी कि ऐसे नक्सलियों पर दर्ज मुकदमे का फास्ट ट्रैक कोर्ट से निष्पादन करवाया जाय, ताकि वे अपने परिवार व बच्चों के बीच रह सकें। सरकार की नियमावली के अनुसार आत्मसमर्पण, पुनर्वास एवं प्रोत्साहित नीति के अनुसार फास्ट ट्रैक कोर्ट, केस लडऩे के लिए सरकारी निश्शुल्क वकील आदि मिलना था। जहां वकील मिले भी, वहां उनका भुगतान नहीं हो सका। सभी वर्षों से न्याय का इंतजार कर रहे हैं।
परिजन की मांगें
- आत्मसमर्पित बंदियों को फास्ट ट्रैक कोर्ट से लंबित कांडों का निष्पादन कराया जाय।
- ऐसे बंदियों को उनके परिचित वकील उपलब्ध कराया जाय और इसके लिए सरकार भुगतान करे।
- ऐसे बंदियों के बच्चे को शिक्षा व हॉस्टल खर्च दिया जाए।
- घर बनाने के लिए सुरक्षित स्थान शीघ्र मिले और मकान बनाने की राशि भी मिले।
- आत्मसमर्पण के एक-दो वर्ष बाद मिलने वाला वार्षिक पुनर्वास राशि जिन्हें नहीं मिला, उन्हें दिया जाए।
सरेंडर करने वाले इन नक्सलियों के परिजन पहुंचे थे पुलिस मुख्यालय
पांडा मुंडा उर्फ रवि पाहन, सुजीत मुंडा उर्फ दीपक मुंडा, लखन सिंह मुंडा, डिंबा पाहन, कुंदन पाहन उर्फ विकास, लादु मुंडा, रूबेन केरकेट्टा, लालदीप सिंह खेरवार, बालकेश्वर उरांव उर्फ बड़ा विकास, रंजीत गंझू, धनेश्वर यादव उर्फ कारगिल, प्रीशिला देवी उर्फ पिलीदी आदि।