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धर्म का काम करने के बाद उसका श्रेय नहीं लेना चाहिए

ग्वालियर। मनुष्य को धर्म के काम में बढ़चढ़कर हिस्सा लेना चाहिए। इससे मनुष्य के कर्म बढ़ते हैं, लेकिन साथ ही धर्म का काम करने के बाद उसका श्रेय नहीं लेना चाहिए। ऐसा करने पर यह काम धर्म में नहीं आता। मनुष्य को क्रोध कम करना चाहिए। क्रोध से जहां शरीर का नाश होता है वहीं परिवार बिखरने का भी खतरा रहता है। यह बात मुनिश्री विहर्ष सागर महाराज ने बुधवार को नई सड़क स्थित चंपाबाग धर्मशाला में आठ दिवसीय अष्टान्हिका पर्व अनुष्ठान महोत्सव में कही। मुनिश्री विजयेश सागर महाराज भी मौजूद थे। मुनिश्री ने कहा कि सुखी कौन है और दुखी कौन है, ये बात श्रीमहावीर स्वामी से श्री गौतम स्वामी ने पूछा था। तब भगवान महावीर स्वामी ने कहा था कि हम अपने घर में भी रहकर सुखी रह सकते हैं। किसी को सुख देने में भी खुशी मिलती है। जब हमारा मन शांत हो शांति हो, किसी से ईर्ष्या हो यानि क्रोध, लोभ, मोह, माया, मान इन सबसे परे हो तो हमारा घर स्वर्ग है। मेरी तो भावना है कि कोई पाप न करे, पुण्य कर उसका फल भोगे। उन्होने कहा कि मनुष अपने माता-पिता की सेवा नहीं करते वे इस जन्म में सुखी नहीं होते हैं। जो मनुष्य माता-पिता का दोष देखे, उनमें कभी बरकत ही नहीं आती। पैसेवाला बने शायद, पर उसकी आध्यात्मिक उन्नति कभी नहीं होती। माता-पिता का दोष नहीं देखना चाहिए। माता-पिता की सेवा करना वह धर्म की संस्कृति है। वह तो चाहे कैसे भी हिसाब हो, पर यह सेवा करना हमारा धर्म है और जितना हमारे धर्म का पालन करेंगे, उतना सुख हमें प्राप्त होगा। मुनिश्री विहर्ष सागर महाराज अपने मुख्यबिंद से मंत्रो का उच्चारण के साथ कोरोना महामारी की समाप्ति आैर विश्वशांति की कामना के लिए अग्निकुंड में जैन समाज के लोगों ने आहुतियां दी। आयोजक आर्शमय पावन वर्षायोग समिति 2020 ग्वालियर एवं जैन मिलन ग्वालियर की ओर से चम्पाबाग धर्मशाला, नई सड़क पर आठ दिवसीय अष्टान्हिका पर्व अनुष्ठान में भक्तिमय संगीत के साथ मुनिश्री के सानिध्य में भगवान आदिनाथ का अभिषेक व शांतिधारा एवं अभिषेक के उपरांत अर्घ्य समर्पित किए गए।

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