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भोपाल। राजधानी में स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट शुरुआत से ही विवादों के साए में रहा है। चाहे स्मार्ट सिटी साइट पर हजारों पेड़ों को गुपचुप तरीके से काटने का मामला हो या फिर प्रोजेक्ट दस्तावेजों में ग्रीन बेल्ट का दायरा कम करने का, इसको लेकर विवाद उठते ही रहे हैं। लेकिन अब जो खुलासा आरटीआइ से हुआ है, उसने पर्यावरण जैसे संदीजा मामले में स्मार्ट सिटी अफसरों की लापरवाही को उजागर किया है। दरअसल स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट को जमीन पर शुरू करने से पहले केंद्र सरकार के एन्वायरमेंटल मैनेजमेंट प्रोग्राम के तहत 22 सदस्यीय सेल बनानी थी, जिसका काम प्रोजेक्ट की वजह से हो रही पर्यावरण क्षति की मॉनीटरिंग कर उसकी जानकारी स्मार्ट सिटी कंपनी को देना था। लेकिन हैरत की बात ये है कि अब तक ये सेल नहीं बनाई गई।
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बता दें कि यह खुलासा पर्यावरणविद् सुभाष सी पांडे ने स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट संबंधी तीन हजार पन्नों की आरटीआइ से मिली जानकारी के तहत किया है। पांडे ने बताया कि एनवायरमेंटल मैनेजमेंट प्रोग्राम के तहत बनाई जाने वाली 22 सदस्यीय टीम स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट का आधार है, लेकिन बिना इस सेल के काम शुरू किया गया और पिछले चार सालों से निरंतर चालू है। इसकी वजह से शहर को भारी पर्यावरणीय क्षति हुई है। उन्होंने बताया कि स्मार्ट सिटी कंपनी से जानकारी निकालने के लिए उन्हें 6 आरटीआइ लगाई थीं। स्मार्ट सिटी कंपनी ने चार अपीलों के बाद करीब डेढ़ महीने में जानकारी उपलब्ध कराई। पांडे ने बताया कि तीन हजार पन्नों में से एक हजार पन्नों की जानकारी का 40 दिन एनालिसिस (अध्ययन) करने के बाद खुलासा हुआ कि स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट का अहम आधार एएमपी सेल बनाई ही नहीं गई।
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सेल पर सालानाखर्च होना था ढाई करोड़
पांडे ने बताया कि सेल के 22 सदस्यों पर प्रोजेक्ट के तहत 21 लाख रुपए प्रतिमाह और ढाई करोड़ रुपए प्रति वर्ष खर्च किया जाना था। नियम तो ये भी था कि प्रोजेक्ट साइट पर एनएबीएल की लैब स्थापित की जानी थी, जो नहीं बन पाई है। यही नहीं, पर्यावरण की मॉनीटरिंग पर 59 करोड़ रुपए हर साल खर्च किए जाने थे। हर साल यह खर्च किया भी जा रहा है, लेकिन कहां, इसका कोई हिसाब-किताब नहीं है।
प्रोजेक्ट ने बिगाड़ा ऑक्सीजन-कार्बन का तालमेल
उन्होंने बताया कि अधिकारियों की लापरवाही की वजह से शहर को बड़ी पर्यावरणीय क्षति हुई है। इससे ऑक्सीजन और कार्बन का संतुलन बिगड़ चुका है, क्योकि यहां करीब 7000 से अधिक पेड़ काटे जा चुके हैं। इससे न केवल जैव-विविधता प्रभावित हुई है, बल्कि लाखों की संख्या में छोटे-छोटे जीव-जंतु भी गायब हो गए हैं, जो इस संतुलन को बनाए रखते थे। यही कारण है कि राजधानी को स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट दिलाने के लिए टाटा कंसल्टेंसी को करीब ढाई करोड़ रुपए देकर प्रोजेक्ट तैयार करने का ठेका दे दिया
प्रोजेक्ट का सबसे बड़ा झूठ
पांडे ने बताया कि दस्तावेजों के मुताबिक 26 नवंबर से 2016 से 28 फरवरी 2017 तक स्मार्ट सिटी साइट पर प्रदूषण की जांच करना बताया गया है। जबकि राज्य सरकार ने स्मार्ट सिटी कंपनी को जमीन 23 मई 2017 को हस्तांतरित की थी। अब सवाल ये है कि जमीन आवंटन से पहले प्रदूषण जांच कैसे कराई गई। यही नहीं, हैरत वाली बात ये है कि स्मार्ट सिटी साइट से पेड़ों को काटने की इजाजत निगम दे रहा है, जबकि इसके लिए एक अलग सेल बनाई जानी थी।
क्या था एन्वायरमेंटल मैनेजमेंट प्रोग्राम
– 24 घंटे पानी के स्प्रिंकलर चलाया जाए, ताकि धूल न उड़े।
– पानी की शुद्धता की जांच हर दिन की जाए।
– 3 एसटीपी लगाए जाने चाहिए।
– मिट्टी की जांच की जानी चाहिए।
– मशीनों से निकलने वाले ऑयल के चलते एक कैमिकल लैब बनाई जानी चाहिए।
– स्मार्ट रोड पर 25 किमी प्रतिघंटे की रफ्तार से ज्यादा पर वाहन नहीं चलाए जाएं
– एक हेल्थ केयर सेंटर इस पूरे क्षेत्र में होना चाहिए।
– खुदाई में मिले अवशेषों को यहां काम कर रहे लोग प्रभावित न करें, इसके लिए उन्हें प्रशिक्षण दिया जाए।
-प्रोजेक्ट की रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा है कि यहां देशी पौधे लगाए जाएंगे लेकिन स्मार्ट सिटी के अधिकारी यहां पॉम ट्री लगाकर हरियाली दिखा रहे है, जो कि सबसे बड़ा खिलवाड़ है।