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आयकर ट्रिब्यूनल की प्रक्रिया को ‘फैसलेस” करने का विरोध

इंदौर। आयकर विभाग में शुरू हुए फेसलेस असेसमेंट का विस्तार अब आयकर अपीलेट ट्रिब्यूनल (आइटीएटी) तक किया जा रहा है। कर सलाहकारों, वकीलों और चार्टड अकाउंटेंट ने इसका विरोध शुरू कर दिया। इंदौर की टैक्स बार एट ट्रिब्यूनल ने सरकार को ज्ञापन भेज इस कदम को आम लोगों को मिलने वाले सुलभ न्याय की राह में रोड़ा करार दिया है। टैक्स बार एट ट्रिब्यूनल के मानद सचिव एडवोकेट गिरीश अग्रवाल और सीए ब्रांच इंदौर के पूर्व अध्यक्ष सीए पंकज शाह के अनुसार एक फरवरी को प्रस्तुत केंद्रीय बजट में कर निर्धारण प्रक्रिया के फेसलेस करने की मुहिम को आयकर प्राधिकरण (इनकम टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल) पर भी लागू करने का प्राविधान शामिल किया है। अगस्त 2020 में कर निर्धारण प्रक्रिया और फिर सितंबर में कमिश्नर अपील की प्रक्रिया या फेसलेस मुहिम के अंतर्गत लाया गया था। अब आनन-फानन में आइटीएटी को भी इसी फेसलेस प्रक्रिया में शामिल करने के लिए बजट में इसका प्राविधान किया गया है। अचानक रातों-रात इस सुव्यवस्थित और सुसंचालित न्यायिक प्रक्रिया को बदल कर फेसलेस करना जिसमें सिर्फ कागजों पर लिख कर वेबसाइट पर जाकर आयकरदाता को अपनी बात रखनी होगी।

व्यापार की जटिलता और इनकम टैक्स की पेचिदगियां फेसलेस प्रक्रिया में अब सिर्फ और सिर्फ कागजों के माध्यम से लिखित में देकर समझानी होगी। दोनों ही पक्षों को ऐसा करना होगा। सामने जज (सदस्य) कौन है, नहीं पता होगा, पैरवी कौन कर रहा है यह भी अदृश्य होगा।

न्यायिक संस्था को फेसलेस प्रक्रिया में लाने पर असमंजस की स्थिति बन गई है। माना यह जाता है कि आयकर विभाग द्वारा कई प्रकरणों में अत्यधिक और अनुचित कर तथा शास्ति आरोपित कर दी जाती है जिसके विरुद्ध करदाता को आयकर आयुक्त (अपील) के समक्ष अपील दायर करके और अपील की सुनवाई के दौरान व्यक्तिगत तौर पर या अपने अधिकृत प्रतिनिधि के माध्यम से अपना पक्ष रखने का अवसर मिल जाता था किंतु यह व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर हाल ही में समाप्त हो जाने से करदाता को प्रथम अपील में राहत की संभावना पहले ही शिथिल हो चुकी है। ऐसे में एक आम करदाता को समुचित न्याय की आशा आइटीएटी से ही शेष रह गई थी किंतु अब यहां भी फेसलेस प्रक्रिया की वजह से व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर पूर्ण रूप से समाप्त हो जाने से करदाता को राहत मिलने में गहन संशय की स्थिति बन गई है। इसकी परिणति करदाता पर अनुचित भारी भरकम कर ब्याज एवं शास्ति के अनुमोदन हो जाएगी। व्यक्तिगत सुनवाई प्राकृतिक न्याय के सिध्दांतों के परिपालन के लिए भी अपरिहार्य है।

क्या है आइटीएटी

1941 से स्थापित ट्रिब्यूनल को कोर्ट का दर्जा दिया गया है। आइटीएटी को भारत देश में स्थापित अन्य 18 ट्रिब्यूनल की जननी माना जाता है। न्याय प्रक्रिया में यह ‘निष्पक्ष, सुलभ तत्पर न्याय” के लिए जानी जाती है। आइटीएटी के तथ्यों (फैक्ट्स) पर आधारित निर्णय अंतिम होते हैं। उन तथ्य आधारित निर्णयों पर हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट भी हस्तक्षेप नहीं करता है। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में आइटीएटी के निर्णयों से कानूनी सवालों पर ही अपील की जा सकती है। अपीलों की सुनवाई कोर्ट रूम की तरह संचालित होती है जिसमें दो जज (जिन्हें न्यायिक और लेखा सदस्य कहा जाता है) दोनो पक्षों के वकील/अधिकारी उपस्थित होते हैं। आयकरदाता और जन साधारण में से जो चाहे कोर्ट रूम में मौजूद हो सकता है। पूरी प्रक्रिया पूर्णत: पारदर्शी, सरल और त्वरित होती है। आयकरदाता पूरे भरोसे के साथ अपने प्रकरण को आइटीएटी के समक्ष रखता है। एडवोकेट गिरीश अग्रवाल के अनुसार आइटीएटी के निर्णयों में से तकरीबन 80 से 90 प्रतिशत निर्णयों को हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट ने मान्य किया है जो कि इस संस्था की कार्यकुशलता और उस पर किए गए भरोसे को दर्शाती है। पूरे देश में इस अचानक किए जा रहे परिवर्तन को लेकर सभी टैक्स बार एसोसिएशन, आयकरदाता और व्यापारिक संगठनों में अत्यधिक रोष है। बहुत सारे ज्ञापन वित्तमंत्री, कानून मंत्री, प्रधानमंत्री कार्यालयों में दिए जा चुके हैं।