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इंदौर: पाकिस्तान से साल 2015 में भारत लौटी गीता का परिवार अब उसे मिल गया है। केवल डीएनए जांच होना बाकी रह गया है। महाराष्ट्र के परभणी जिला के जिंतूर गांव में रहने वाले एक परिवार ने गीता के माता-पिता होने का दावा किया था।
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इसके बाद गीता के देखरेख का जिम्मा संभाल रहे इंदौर की सामाजिक संस्था के लोग उसे लेकर उसके माता-पिता से मिलाने के लिए पहुंचे थे। उसके बाद जो बात गीता ने उन्हें बताई थी उसके अनुसार लगभग सारी परिस्थितियां वहां से मेल खा रही हैं।
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चाहे वह रेलवे स्टेशन के पास मेटरनिटी होम होने की बात हो या फिर उनके परिवार के द्वारा मंदिर के बाहर फूल मालाएं बेचने की बात हो। इतना ही नहीं गीता के पेट पर जो जले का निशान है उसकी भी तस्दीक उनके परिवार वालों ने की है, जिसके बाद इंदौर की सामाजिक संस्था ने गीता को महाराष्ट्र की एक सामाजिक संस्था को गीता को सौंप दिया है।
गीता अभी वहीं पर रहेगी। इस दौरान उसके माता-पिता होने का दावा करने वाली दंपत्ति उससे लगातार मिलते रहेंगे ताकि ये बात पूरी तरीके से साफ हो पाए कि ये वही गीता के माता-पिता हैं। इसके साथ ही सामाजिक संस्था के कार्यकर्ताओं ने सरकार से उस दंपति के डीएनए टेस्ट कराने की मांग की है।
गौरतलब है कि गीता लंबे समय से इंदौर में रह रही थी। इस दौरान कई परिवारों ने इंदौर आकर गीता के माता-पिता होने का दावा किया, लेकिन कई मामलों में गीता ने खुद ही अपने माता-पिता को पहचानने से इंकार कर दिया था।
गीता ने जिस तरीके से सामाजिक संस्था के लोगों को बताया था उसके अनुसार ये तय था कि गीता मराठवाड़ा या तेलंगाना इलाके की रहने वाली है। इसी आधार पर गीता को लेकर उस इलाके की मीडिया पर पुलिस स्टेशनों में गीता की फोटो भेजी गई थी ताकि उसका परिवार मिल सके।