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बीस सालों से अस्पताल के मरीजों को पिला रहे हैं चाय और खिला रहे हैं खिचड़ी

उमरिया। यह सोच पाना कि दूर ग्रामीण क्षेत्रों से आकर जिला अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों और उनके परिजनों को सुबह चाय कौन देगा सबके बस की बात नहीं है। पर ऐसा सोचने वाले लोग भी हैं और ऐसे ही लोगों में उमरिया के 70 वर्षीय जम्मूमल वाधवानी हैं जो पिछले बीस साल से लगातार न सिर्फ यह सोच रहे हैं बल्कि सोचने के साथ ही मरीजों और उनके परिजनों को चाय भी पिला रहे हैं। इतना ही नहीं वे मरीजों और उनके परिजनों का प्रतिदिन हालचाल पूछते हैं और उनकी आवश्यकता के अनुसार उन्हें भोजन भी पहुंचाते हैं। इसके लिए उन्होंने नियमित अस्पताल परिसर में ही खिचड़ी बनवाने और बांटने की भी व्यवस्था की है।

तब नहीं मिलती थी चाय

जम्मूमल बताते हैं कि बीस साल पहले उमरिया और भी छोटी सी जगह थी जहां चाय की दुकानें कम हुआ करती थी। लोगों को सुबह चाय के लिए परेशान होते हुए उन्होंने देखा है। इसी बीच उन्हें हार्ट अटैक हुआ और जब वे अस्पताल में भर्ती हुए तो यह संकट उन्हें और भी बड़ा नजर आया। उसी समय उन्होंने संकल्प लिया कि अगर वे स्वस्थ्य होकर वापस लौटते हैं तो अस्पताल के मरीजों की अजीवन सेवा करेंगे। बस उसी के बाद से जम्मूमल वाधवानी ने अस्पताल में भर्ती मरीजों की सेवा शुरू कर दी।

बदल दिया कारोबार

बीस साल पहले जम्मूमल वाधवानी कपड़े की दुकान चलाते थे। उन्हें चाय और खिचड़ी बनाने के लिए लकड़ी खरीदनी पड़ती थी जो काफी महंगी पड़ती थी। उन्होंने जब लकड़ी का काम करने वालों को देखा तो पाया कि चाय बनाने लायक जलाऊ लकड़ी तो वैसे ही निकल आती है। यह देखकर उन्होंने कपड़े की दुकान बंद कर दी और जलाऊ लकड़ी का छोटा सा कारोबार शुरू कर दिया। अब उन्हें अस्पताल के लिए लकड़ खरीदनी भी नहीं पड़ती थी और ज्यादा अपनी दुकान से जाने के कारण ज्यादा महंगी भी नहीं पड़ती थी। तब से आज तक जम्मूमल लकड़ी का ही कारोबार भी कर रहे हैं।

इस तरह होता है काम

प्रतिदिन सुबह पांच बजे जम्मूमल जिला अस्पताल पहुंच जाते हैं और चूल्हे में लकड़ी जला देते हैं। तब तक चाय पीने वाले लोग पहुंच जाते हैं जिनकी मदद वे पानी मंगवाने और चाय बनवाने में ले लेते हैं। इसके बाद केतली में चाय भरकर वार्ड में डिस्पोजल से या तो खुद बांटने चले जाते हैं या फिर रोज आने वाले लोग उनकी मदद कर देते हैं। रोज की चाय और खिचड़ी में कितना खर्च होता है इस सवाल का जवाब जम्मूमल सिर्फ मुस्कुराकर देते हैं और आसमान की तरफ देखने लगते हैं। हालांकि अनुमान के अनुसार पांच सौ से एक हजार रूपये प्रतिदिन इस पर खर्च कर देते हैं।