1940 रामगढ़ आए थे सुभाषचंद्र बोस, यहीं से गरम दल और नरम दल की शुरुआत हुई थी
रामगढ में सुभाषचंद्र बोस की 123वां जयंती बड़ी धूम धाम मनाया गया
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Ramgarh/News lens:झारखंड के रामगढ में सुभाषचंद्र बोस की देशभर से अलग हट कर बेहद महत्वपूर्ण अतीत के रूप से जाना और पहचाना जाता है , क्योंकि रामगढ में हुई 1940 में कांग्रेस की महाअधिवेशन में यही से देश आज़ादी के लिये गरम दल और नरम दल की शुरुवात हुई थी ।
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यह ऐतिहासिक भूमि रामगढ़ सुभाष चंद्र जी की कर्मभूमि रही है क्योंकि 1940 में कांग्रेस के महाधिवेशन में यहाँ बापू और सुभाष चंद्र के बीच मतभेद हुआ था जिसके वजह से गरम दल और नरम दल का नारा यहां पर पहली बार गुंजा था” ये बातें आज रामगढ़ की नवनिर्वाचित विधायिका ममता देवी ने उस वक्त कही जब सुभाष चंद्र बोस की 123 वीं जयंती मनाई जा रही थी
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रामगढ़ के हृदय स्थली सुभाष चौक पर आज नेताजी के प्रतिमा पर लोगों ने माल्यार्पण कर उनकी 123वी जयंती मनाई। जिसमे रामगढ़ की विधायिका ममता देवी ने भी शिरकत किया। इस मौके पर नेताजी जयंती कमेटी के कई लोग शामिल थे, जिसमें शहर के प्रबुद्ध एवं बुद्धिजीवी गण भी उपस्थित हुए। सभी लोगों ने नेताजी के बताए रास्ते पर चलने का संकल्प लेते हुए देश में युवाओं से अपील की कि सुभाष चंद्र जी के बातों को प्राथमिकता देते हुए देश को आज एकता के सूत्र में पिरोने की जरूरत है। मौके पर रामगढ़ विधायिका ममता देवी ने बताया कि यह सुभाष जी की कर्मभूमि रही है साथ ही हमारा रामगढ़ ऐतिहासिक भूमि भी है क्योंकि 1940 में कांग्रेस के महाधिवेशन में बापू और सुभाष चंद्र बोस जी के बीच मतभेद हुआ था जिसके वजह से गरम दल और नरम दल का नारा यहां पर गुंजा था, मैं यहां की युवाओं से कहना चाहूंगी कि सभी एकजुटता के साथ रहें और उनके पद चिन्हों पर चलते हुए देश तथा राज्य के लिए अग्रणी भूमिका निभाए।
मौके पर उपस्थित एक सामाजिक कार्यकर्ता ने बताया कि रामगढ़ एक ऐतिहासिक धरती है। 1940 में कांग्रेस का अधिवेशन यहाँ पर हुआ था । गांधी जी सिताराममैया को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाना चाहते थे। जबकि सुभाष चंद्र जी आजादी को क्रांतिकारी तरीके से लेना चाहते थे वे अंग्रेजों से भीख में आजादी नहीं चाहते थे उनके विचारों में तालमेल नहीं रखने के कारण समझौता विरोधी सम्मेलन आयोजित हुआ । जिसमें गरम दल और नरम दल का गठन हुआ, जिसके नाम से इस सम्मेलन को जाना जाता है सम्मेलन आयोजन स्थल यहीं पर है । जिसकी अध्यक्षता स्वामी सहजानंद सरस्वती ने की थी।
गरम दल और नरम दल की पुष्टि यहां के एक बुजुर्ग सीख ने भी की और उन्होंने बताया कि यह वही स्थान है जहां से गरम दल और नरम दल का नारा लगा था यह बातें मुझे यहां एक बंगाली बाबू ने बताई थी जो सुभाष चंद्र बोस के साथ रहते थे ।