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कभी अपराध के लिए जाना जाता था राजपुरा गांव, अमृतालयम ने किया चमत्कार

इंदौर।  यदि संकल्प, दृढ़ इच्छाशक्ति और प्रयास ये तीनों मिल जाएं तो असंभव जैसा कार्य भी संभव हो जाता है। इसी का प्रमाण है इंदौर की सीमा पर बसा गांव राजपुरा। यहां की पहचान कुछ साल पहले तक अपराध और अपराधियों वाले गांव के रूप में थी। बदलाव के संकल्प के साथ बाहर से आए युवाओं ने यहां अमृतालयम केंद्र की स्थापना की। शुरुआत में उन्हें कड़े प्रतिरोध के साथ हमले जैसी घटनाओं का भी सामना करना पड़ा, लेकिन प्रतिकार के बजाय वे युवा डटे रहे। कई माह प्रयास के बाद धीरे-धीरे स्थिति बदलने लगी। करीब 15 वर्ष बाद यहां हालात पूरी तरह से बदल चुके हैं। पहले जहां खेतों में शराब बनाने के लिए भट्टियां जलती थीं, वहां अब फसलें लहलहाती हैं।

अपराध और शराब में डूबे रहने वाले इस गांव के बाशिंदे खुद तो संपन्न हुए ही, जिले और संभाग के ऐसे अन्य क्षेत्रों में भी सद्गुणों की खुशबू फैला रहे हैं, जहां अपराध अधिक होते हैं। राजपुरा में पंचायत चुनाव में भी ग्रामीण सर्वसम्मति से अपने प्रतिनिधि चुन लेते हैं। धार मार्ग पर शहर से करीब 25 किमी और मुख्य मार्ग से 4 किमी भीतर स्थित है राजपुरा गांव। कुछ साल पहले तक यह इतना बदनाम था कि लोग यहां आने-जाने से कतराते थे। आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों की संख्या ज्यादा होने से अन्य गांवों के लोग यहां रोटी-बेटी का संबंध नहीं रखते थे। ऐसे में यहां पहुंचा ‘अमृतालयम’।

इससे जुड़े स्वाध्यायी लोगों ने जब गांव में आना-जाना शुरू किया तो ग्रामीणों ने इनका विरोध किया। फिर जब ये ग्रामीणों के छोटे-मोटे काम में मददगार बनने लगे तो इनका विरोध कम होने लगा। तब उन्होंने ग्रामीणों को समझाना शुरू किया। धीरे-धीरे गांव के लोगों के कदम खुद-ब-खुद अमृतालयम की तरफ मुड़ने लगे। लोगों का ध्यान शराबखोरी और अपराधों से हटकर खेती-बाड़ी में लगने लगा। लोगों में स्वाध्याय लाने और अमृतालयम स्थापित करने की शुरआत पांडुरंग शास्त्री आठवले ने की थी। अलग तरीके से हुआ चुनाव यह स्वाध्याय का ही असर है कि पिछले पंचायत चुनाव में राजपुरा में अलग तरीके से पंच-सरपंच चुने गए। जो भी व्यक्ति चुनाव लड़ना चाहते थे, उनके नामों की पर्चियां ‘अमृतालयम’ में एक बर्तन में ईश्वर के सामने रख दी गई। ग्रामीणों की मौजूदगी में एक बालक ने पर्चियां निकालीं और उनमें लिखे नामों की घोषणा कर दी गई।

बदल गई जिंदगी

पंचायत राजपुरा के सहायक सचिव जसवंतसिंह सांखला ने बताया, ‘अमृतालयम आने से पहले ग्रामीणों की जिंदगी बदतर थी। पुरष महिलाओं को पीटते थे। बच्चे स्कूल नहीं जाते थे। ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति खराब थी, लेकिन अब परिवर्तन आ गया है। गांव के युवक अब सरकारी नौकरी तक कर रहे हैं।’

राजपुरा निवासी जगदीशचंद्र सोल्टिया ने कहा, ‘पहले लड़की नहीं देते थे राजपुरा किसी समय इतना बदनाम था कि कोई यहां लड़की नहीं देता था। अब सिर्फ यह पूछा जाता है कि लड़का स्वाध्यायी है या नहीं? अमृतालयम गांव में आने के बाद ग्रामीणों का जीवन बदल गया है। लोगों में मदद का जज्बा जाग गया है।’

आसान नहीं था समझाना

शिवाकांत बाजपेई ने बताया, ‘शुरुआत में ग्रामीणों को समझाने में बहुत दिक्कत आई, लेकिन लगातार प्रयास से यह संभव हो सका। राजपुरा में अब अपराध नहीं होते। लोग एक-दूसरे की सहायता करते हैं। स्वाध्याय ने लोगों का जीवन बदल दिया है। लोगों की आर्थिक स्थिति भी सुधर गई है। ग्रामीण खेतों में काम करते हैं। लोगों की व्यसन की लत भी छूट गई है।’