भीख मांगने वाले बच्चे अब वर्चुअल क्लास में सीख रहे कोडिंग, अमेरिका और फ्रांस के विशेषज्ञ दे रहे शिक्षा
ग्वालियर। कभी भीख मांगना उनकी नियति थी और आंखों में भविष्य को लेकर रोशनी की कोई किरण भी नहीं थी। लेकिन, दिन बदलते देर नहीं लगी और अब ऐसे बच्चे मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में स्थित अभ्युदय आश्रम में कंप्यूटर की आधुनिक विधा ‘कोडिंग’ का ज्ञान ले रहे हैं। इसका प्रशिक्षण उन्हें अमेरिका और फ्रांस के विशेषज्ञों द्वारा वर्चुअल कक्षाओं के माध्यम से दिया जा रहा है। उद्देश्य भी बहुत नेक है, बच्चे कंप्यूटर की सामान्य जानकारी से लेकर कोडिंग तक सीखें और सुनहरा भविष्य गढ़ सकें।
अभ्युदय आश्रम, देह व्यापार के लिए बदनाम बेड़िया जाति की महिलाओं और उनके बच्चों के उत्थान के लिए किए जाने वाले काम की वजह से अलग पहचान रखता है। अब यह आश्रम रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, ट्रेन, बाजार में भीख मांगने वाले बच्चों का भविष्य संवारने का काम रहा है। इस आश्रम ने भीख मांगने वाले बच्चों को 2017 से दाखिला देना शुरू किया था। तब से आश्रम में ही इनके निशुल्क रहने-खाने का इंतजाम है। यहां रहने वाले बच्चे नजदीकी सरकारी स्कूल में औपचारिक शिक्षा भी लेते हैं। अब आश्रम में ऐसे बच्चों की संख्या 25 हो चुकी है। उन्हें आश्रम में कंप्यूटर शिक्षा देने की व्यवस्था की गई है। अमेरिका व फ्रांस के कंप्यूटर विशेषज्ञों की मदद मिली तो बच्चे कोडिंग भी सीखने लगे हैं। विशेषज्ञ बिना फीस के पढ़ा रहे हैं। आश्रम से जुड़े दिल्ली निवासी सोनू गुप्ता कम्युनिटी टेक्नोलाजी स्किल प्रोग्राम संचालित करते हैं। इन्हीं के संपर्क से आश्रम और बच्चे विदेशी विशेषज्ञों से जुड़े। चार माह कंप्यूटर की बेसिक शिक्षा देने के बाद छह माह के कोडिंग कोर्स की शुरुआत की गई है।
दुभाषिया भी नियुक्त
बच्चे विशेषज्ञों की बातों को समझ सकें, इसके लिए आश्रम में दुभाषिया भी नियुक्त किया गया है। फ्रांस की लिन होनार्ड प्रत्येक बुधवार को अंग्रेजी बोलना सिखाती हैं। अमेरिका के नार्थ कैलिफोर्निया में रहने वाले सहेज सिंह, राजेश्वरी सिंह और केशव खन्ना एक-एक दिन एक घंटे की आनलाइन कक्षा लेते हैं।
यह होती है कंप्यूटर कोडिंग
कोडिंग के जरिये ही किसी कंप्यूटर को बताया जाता है कि उसे क्या करना है। कोडिंग और प्रोग्रामिंग में फ्रंट एंड और बैक एंड होता है, जिससे हम कंप्यूटर और स्मार्टफोन का उपयोग कर पाते हैं। मोटे तौर पर कंप्यूटर जिस भाषा को समझता है, उसे कोडिंग कहा जाता है। इसे सीखने के बाद एप और वेबसाइट बनाई जा सकती है।
इसलिए भी चर्चित है आश्रम:
बेड़िया जाति के बच्चों का भविष्य संवारने के लिए 1994 में समाजसेवी रामसनेही छारी ने मुरैना में आश्रम की शुरुआत की थी। 2019 में रिलीज हुई फिल्म सोनचिरैया में इस आश्रम की एक बालिका खुशिया नागर ने काम किया था। हीरोइन भूमि पेडनेकर आश्रम में आई थीं। यहां उन्होंने लड़कियों के शौचालय, कंप्यूटर और अन्य शिक्षण सामग्री के लिए दो लाख रुपये दिए थे।
विदेशी शिक्षकों से नया सीखने को मिलता
कोरोना की वजह से स्कूल बंद हुए तो आश्रम ने अंग्रेजी भाषा और कंप्यूटर की कक्षाएं शुरू करवाई। इनकी पढ़ाई स्कूल में नहीं होती है। विदेशी शिक्षकों से प्रत्येक बार कुछ नया सीखने को मिलता है।
– तेजस्विनी छारी, छात्रा, अभ्युदय आश्रम
25 बच्चों को दी जा रही प्राथमिक शिक्षा
आश्रम में 25 बच्चों को प्राथमिक शिक्षा दी जा रही थी फिर कंप्यूटर चलाना सिखाया गया। आश्रम से कई समाजसेवी व अन्य संस्थाएं जुड़ी हैं, जिनकी मदद से फ्रांस-अमेरिका के विशेषज्ञों से बच्चों को कोडिंग व अंग्रेजी सिखाई जा रही है।
-अरुणा छारी, संचालिका, अभ्युदय आश्रम