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मजदूरी छोड़ पथरीली जमीन को समतल कर लगाई टमाटर की खेती, किसानों के लिए बना मिसाल

कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख कृषि वैज्ञानिक ने की इन की सराहना।

रामगढ़ : पथरीली जमीन को समतल कर लगाई टमाटर की खेती, वैश्विक महामारी के दौरान परिवार चलाने में हुई दिक्कत तब सुनील माझी ने मजदूरी छोड़ किया खेती, बैंकों से मदद नहीं मिलने पर रिश्तेदारों से कर्ज लेकर शुरू की खेती, अभी भी सरकारी मदद की आस में है इस किसान का परिवार, क्षेत्र में दूसरों के लिए बने हैं प्रेरणा स्रोत कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख कृषि वैज्ञानिक ने की इन की सराहना।

“जहां चाह वहा राह” और “मरता क्या नहीं करता” इन दोनों कहावत को चरितार्थ किया है एक दैनिक मजदूरी करने वाला मेहनतकश आदिवासी युवक ने। इस युवक का नाम सुनील माझी है जो रामगढ़ जिले के मांडू प्रखंड का रहनेवाला है। आरा दक्षिणी पंचायत के चार नंबर में रहने वाले सुनील मांझी अपने तीन भाइयों एवं पत्नी तथा दो बच्चों के साथ रहता है। घर में सबसे बड़े होने के नाते पूरे परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेवारी सुनील के कंधों पर ही टिकी है।

सुनील पहले दैनिक मजदूरी कर अपने परिवार का भरण पोषण करता था लेकिन वैश्विक महामारी के दौरान इसकी दैनिक मजदूरी छीन गई। फिर इसने खेती करने की सोची और अपने एक मित्र सुरेंद्र महतो से इसकी सलाह ली जो कृषि विज्ञान केंद्र से प्रशिक्षण प्राप्त कर अपने छोटे से जमीन में खेती करता था। सुनील के पास अपने पुरखों की दो चार एकड़ पथरीली जमीन विरासत में मिली थी जिसमें उसने खेती करने का मन बनाया। लिहाजा एक एकड़ पथरीली जमीन पर सुनील ने टमाटर की खेती कर डाली जिसमें उनकी पत्नी सहित उनके दो छोटे-छोटे बच्चों एवं भाइयों ने भी भरपूर सहयोग दिया।

सुनील के इस पथरीली जमीन पर लाल-लाल टमाटर की खेती हुई जिससे इनका पूरा जमीन लाल दिखने लगा। वैश्विक महामारी ने सुनील की दैनिक मजदूरी छीन ली लेकिन भगवान ने इसे खेती करने की युक्ति दे दे डाली जिससे आज उसका परिवार भरण पोषण कर रहा है। सब्जियों की कीमत में उछाल के बाद टमाटर के दाम इन दिनों काफी महंगे है जिससे सुनील को मुनाफा भी हो रहा है हालांकि बेमौसम बरसात के वजह से सुनील की इस टमाटर की खेती को थोड़ा नुकसान भी पहुंचा है।

खेती की शुरुआत करने के लिए आर्थिक तंगी से जूझ रहे सुनील ने कई बैंकों का चक्कर भी लगाया लेकिन इसे किसी ने लोन नहीं दिया बहरहाल इसने अपने रिश्तेदारों से थोड़ी कर्ज लेकर इस खेती की शुरुआत की हालांकि आज भी सरकार की मदद के लिए यह पूरा परिवार आस लगाए बैठा है। आर्थिक तंगी के कारण मात्र नौवीं कक्षा तक पढ़ कर पढ़ाई छोड़ने वाला सुनील अब क्षेत्र के दूसरे किसानों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बना हुआ है। इसकी मेहनत से खुश होकर कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी डॉ दुष्यंत राघव ने बताया कि वैश्विक महामारी के दौरान मजदूरी बंद होने पर सुनील मांझी ने अपने पथरीली जमीन में टमाटर की खेती कर दूसरों युवाओं को राह दिखा रहे हैं जिससे प्रधानमंत्री का सपना भी सच हो रहा है ।

कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख वैज्ञानिक ने यह भी बताया कि इस युवा किसान ने एक नई सार्थक पहल की है जिसकी सराहना कृषि विज्ञान केंद्र भी करता है, वैज्ञानिक तरीके से अगर युवा किसान खेती करें तो वह निश्चित रूप से दोगुना मुनाफा कमा सकते हैं और न्यूट्रिशन की खेती कर प्रदेश को कुपोषण से मुक्त भी कर सकते हैं ।

न्यूज़ लेंस से बात करते हुए युवा किसान सुनील माझी ने बताया कि इस टमाटर की खेती के लिए हमारे एक दोस्त ने मुझे बताया जो कृषि विज्ञान केंद्र से प्रशिक्षण लिए हुए थे, पहले मजदूरी करते थे और लॉक डाउन होने के कारण काम बंद हो गया फिर मुझे काम कहीं नहीं मिला फिर हमने टमाटर की खेती का मन बनाया और टमाटर की फसल अच्छी हुई बाजार में दाम भी अच्छे मिले लेकिन बेवजह बरसात से फसलों को नुकसान भी हुआ ।

किसान सुनील मांझी ने यह भी बताया कि लॉक डाउन की वजह से जिन मजदूरों को काम छूट गया है वह किसी दूसरे काम को करते हुए आत्मनिर्भर बने, सरकार की किसी योजना का लाभ मुझे अभी तक नहीं मिला है लेकिन हम उम्मीद करते हैं कि मुझे मदद मिलेगा ।
सुनील माझी को खेती की ओर अग्रसर करने वाले उनके पड़ोसी दोस्त ने बताया कि सुनील जी ने अपनी पथरीली जमीन पर काफी मेहनत मशक्कत करने के बाद खेती की है, कोविड-19 के दौरान यह बैठे हुए थे तब हमने उन्हें बताया और इन्होंने टमाटर लगाई जो काफी अच्छा हुआ और उसके बाजारों में कीमत भी अच्छे मिले हालांकि बरसात से काफी नुकसान हुआ है।

लॉकडाउन ने कईयों का रोजगार छीना तो कईयों को सफल भी बनाया है, इसका जीता जागता उदाहरण रामगढ़ के मांडू प्रखंड में रहने वाले सुनील मांझी के खेतों में दिखा, जब इन्होंने अपनी पथरीली जमीन पर बाजार की सबसे ऊंची कीमत पर बिकने वाली टमाटर की लहलहाती खेती की, अब यह दूसरे किसानों के लिए क्षेत्र में प्रेरणा स्त्रोत बने हुए हैं।