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भारत और चीन के विदेश मंत्रालयों के बीच हुई बात, तनाव को नहीं बढ़ाने पर बनी सहमति

नई दिल्ली। भारत और चीन ने एक बार फिर सीमा पर उपजे सैन्य तनाव को आपसी विमर्श से दूर करने का माद्दा दिखाया है। पूर्वी लद्दाख के वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर तकरीबन एक माह से चीनी सैनिकों की घुसपैठ से जो हालात बने थे उस पर शुक्रवार को दोनों देशों के विदेश मंत्रालय के अधिकारियों के बीच गहन विमर्श हुआ। इसमें यह सहमति बनी कि जो भी हालात बने हैं उसे एक दूसरे की भावनाओं और चिंताओं को ध्यान में रखते हुए दूर किया जाएगा और ऐसी स्थिति को बड़े विवाद में नहीं बदला जाएगा

लद्दाख में जारी गतिरोध पर हुई बात 

भारत के विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव नवीन श्रीवास्तव (पूर्वी एशिया) और चीने के विदेश मंत्रालय के महानिदेशक वु जियानझाओ के बीच वीडियो कांफ्रेंसिंग में लंबी बातचीत हुई। बताया जाता है कि पूरी बातचीत वास्तविक नियंत्रण रेखा पर बिगड़ रही स्थिति पर केंद्र‍ित रही। यह बातचीत सैन्य अधिकारियों के बीच होने वाली वार्ता से एक दिन पहले हुई है। शनिवार को लेफ्टिनेंट जेनरल स्तरीय बातचीत से ठीक पहले दोनो देशों ने कूटनीतिक पहल कर अपने सैन्य अधिकारियों को यह साफ निर्देश दे दिया है कि अब हालात को नियंत्रण में करना है।

बढ़ने नहीं देना है तनाव 

विदेश मंत्रालय की तरफ से दी गई जानकारी के मुताबिक पांच जून, 2020 को हुई बैठक में मौजूदा हालात की समीक्षा की गई। इस संदर्भ में दोनों देशों के शीर्ष नेताओं के बीच बनी सहमित का भी जिक्र हुआ कि भारत और चीन के बीच शांतिपूर्ण, स्थायी एवं संतुलित रिश्ते समूचे विश्व में शांति के लिए जरूरी हैं। दोनों पक्षों के बीच यह सहमति बनी है कि शीर्ष नेताओं की तरफ से मिले निर्देश के मुताबिक ही दोनों देशों को आपसी मद्दों को सुलझाने की कोशिश करनी चाहिए। ऐसा करते समय एक दूसरे की भावनाओं, संवेदानाओं और चिंताओं का भी ध्यान रखना चाहिए।

बेहतर रिश्‍तों के लिए शांति जरूरी 

प्राप्‍त जानकारी के मुताबिक, साथ ही कोशिश यह होनी चाहिए कि इस तरह के विवाद बड़े मतभेद में नहीं बदलने चाहिए। सूत्रों के मुताबिक दोनों देशों ने कूटनीतिक स्तर पर शनिवार को सैन्य अधिकारियों की बैठक के लिए एक लाइन खींच दी है फ‍िर भी इस बैठक की खास अहमियत होगी। नई दिल्ली में चीन के राजदूत सून वीडोंग ने शुक्रवार को हुई वार्ता के बारे में कहा है कि दोनों देशों के बीच यह सहमति बढ़ रही है कि वो एक दूसरे के लिए खतरा नहीं हैं। बैठक में कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई पर भी बात हुई है।

सैन्‍य अधिकारियों की बैठक से पहले खींची लाइन 

सनद रहे कि ऐसी ही स्थिति साल 2017 में डोकलाम (भूटान-चीन-भारत) बार्डर पर भी उत्पन्न हुई थी। उस वक्‍त भी दोनों देशों की सेनाएं एक दूसरे के सामने डट गई थी। तकरीबन 73 दिनों तक दोनों पक्ष बेहद तनावग्रस्त रहे थे। फिर विदेश मंत्रालय के स्तर पर कई चरणों की बातचीत के बाद सैन्य जमावड़े में कमी हुई थी। सनद रहे कि अप्रैल, 2018 में जब पीएम नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी शिनफिंग के बीच पहली अनौपचारिक बातचीत हुई थी उसमें यह सहमति बनी थी कि किसी भी विवाद को बड़ा झगड़ा नहीं बनने देंगे।

इसी तरह सुलझा था डोकलाम विवाद 

इस बार पूर्वी लद्दाख के गलवन क्षेत्र में चीन की सेना पीएलए के सैनिकों ने एक महीने से घुसपैठ कर रखा है। चीन की सैनिक गतिविधियों के बढ़ते देख भारत ने भी वहां अपने सैनिकों की संख्या बढ़ानी शुरू कर दी है। बता दें कि लद्दाख क्षेत्र में दोनों देशों के बीच 857 किलोमीटर लंबी सीमा है। इसमें 368 किलोमीटर अंतरराष्ट्रीय सीमा है यानी जिसको लेकर दोनो देशों के बीच कोई विवाद नहीं है लेकिन 489 किलोमीटर का इलाका एलएसी जिसको लेकर विवाद है। यह पूरा का पूरा हिस्सा सिर्फ गर्मियों के मौसम में ही पांच महीने के लिए खुला होता है।