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जानिए, एचसीक्यू को बदनाम करने के लिए कैसे हो रही है अंतरराष्ट्रीय साजिश!, ICMR देगा दुष्‍प्रचार का जवाब

नई दिल्ली। साइंस जर्नल लांसेट भले ही हाइड्रोक्सी-क्लोरोक्विन (एचसीक्यू) पर प्रकाशित शोधपत्र के डाटा की जांच कर रहा हो और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इसकी ट्रायल फिर से शुरू कर दी है, लेकिन इससे गहरे अंतरराष्ट्रीय साजिश की आशंका गहरा गई है।

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) के वैज्ञानिकों का मानना है कि कोरोना वायरस को रोकने में एचसीक्यू के कारगर होने की पुष्टि होने के साथ ही इसके खिलाफ साजिश की शुरुआत हो गई थी। लांसेट में प्रकाशित कथित शोध उसी की परिणति है। साजिश की पुष्टि इस बात से भी होती है कि पहले एचसीक्यू के कोरोना मरीजों के लिए जानलेवा साबित होने के दावे किए गए। इस दावे की हवा निकलने के तत्काल बाद कोरोना वायरस को रोकने में इसके कतई भी असरकारी नहीं होने की बात कही जाने लगी है।

पिछले 80 सालों से हो रहा है इस दवा का इस्‍तेमाल 

वैसे तो आइसीएमआर का कोई भी वैज्ञानिक इस मुद्दे पर आधिकारिक रूप से बोलने के लिए तैयार नहीं है। लेकिन, उनका साफ कहना है कि 80 सालों से पूरी दुनिया में इस दवाई का इस्तेमाल किया जा रहा है और कभी इस पर जानलेवा होने का आरोप नहीं लगा। मलेरिया के इलाज में इसका व्यापक इस्तेमाल तो होता ही रहा है, साथ ही मलेरिया से बचने के लिए पहले ही इसके इस्तेमाल की इजाजत दी गई है। उन्होंने कहा कि यूरोप और अमेरिका के लोगों को मलेरिया प्रभावित एशिया व अफ्रीका जाने के पहले सामान्य रूप से इसे दिया जाता रहा है

लांसेट में छपे शोधपत्र में फर्जी आंकड़ों का किया गया इस्तेमाल

लांसेट के शोध के पीछे बड़ी साजिश की ओर इशारा करते हुए आइसीएमआर के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने कहा कि पूरी दुनिया से 96 हजार मरीजों का डाटा जुटाने वाली अमेरिका स्थित सर्जीफेयर कंपनी के सीईओ तपन देसाई ने इसका स्त्रोत बताने से इन्कार कर दिया है। इस डाटा के फर्जी होने का सबसे बड़ा सुबूत यह है कि इसमें आस्ट्रेलिया में कोरोना से मरने वाले लोगों की संख्या उनकी वास्तविक संख्या से अधिक दिखाई गई

आंकड़ों के आधार पर जवाब देने में जुटा आइसीएमआर

आइसीएमआर एचसीक्यू को बदनाम करने की कोशिशों का आंकड़ों के आधार पर जवाब देने की तैयारी में जुटा है। आइसीएमआर के अनुसार एचसीक्यू कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने में 80 फीसद तक सफल पाया गया है। इसी कारण इसे कोरोना के इलाज व प्रबंधन में लगे सभी फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं को देने फैसला किया गया है। आइसीएमआर कोरोना संक्रमण को रोकने में एचसीक्यू पर किए गए अध्ययन का वैज्ञानिक डाटा अगले हफ्ते सार्वजनिक करेगा।