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यहां फूस की झोपड़ी में चल रहा गुरुकुल, जनजाति छात्रों के श्रीमुख से संस्कृत का शुद्ध उच्चारण सुन रह जाएंगे दंग

देवधर। मिट्टी और ईंट की दीवार पर फूस की छत। उसके नीचे अध्ययन करते आदिवासी बच्चे। फर्राटेदार अंग्रेजी के साथ संस्कृत के भी शुद्ध उच्चारण में दक्ष। जी हां, बात हो रही है देवघर स्टेशन के समीप रामकृष्ण विवेकानंद विद्यापीठ की। यहां कक्षा एक से सात तक आदिवासी बच्चों को निश्शुल्क शिक्षा दी जाती है। संन्यासी राधाकांतानंद उर्फ उदय इसे संचालित कर रहे हैं। पूरा जीवन उन्होंने इन बच्चों की तालीम के लिए समर्पित कर दिया है। विद्यापीठ के संचालन के लिए वे जगह-जगह भ्रमण करते हैं, दान में जो मिलता है उससे निश्शुल्क शिक्षा की व्यवस्था करते हैं।

तीन बच्चों के साथ विद्यापीठ की शुरुआत 

स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस के जीवन से प्रभावित राधाकांतानंद बताते हैं कि वर्ष 2014 में तीन बच्चों के साथ विद्यापीठ की शुरुआत की थी। अब यहां देवघर के मोहनपुर प्रखंड तथा बिहार के कटोरिया प्रखंड के 67 आदिवासी बच्चे पढ़ रहे हैं। पास में बने छात्रावास में रहते हैं, समूह में अपना भोजन खुद बनाते हैं। घर में बेहद गरीबी से रूबरू हो चुके इन बच्चों में कुछ करने की ललक है। जो दिख रही है। इनके माध्यम से देवभाषा संस्कृत को संरक्षित कर रहा हूं। स्वामी बताते हैं कि बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा क्षेत्र के ही युवाओं को दिया है। इसके लिए उनको मानदेय देते हैं।

बिना देखे बच्चे करते गीता का पाठ

मोहनपुर प्रखंड के नोनिया का गोपाल कुमार मंडल। तेरह वर्षीय गोपाल शिद्दत से पढ़ रहा है ताकि बड़ा होकर देश का अच्छा नागरिक बने। कक्षा चार का सोनू मरांडी संस्कृत के श्लोकों का  बेहतरीन उच्चारण करता है। यहां पढऩे वाले हर बच्चे की संस्कृत, अंग्रेजी व अन्य विषयों पर अच्छी पकड़ हो रही है। कक्षा छ: के बच्चे तो अनेक पौधों के वैज्ञानिक नाम झट से बता देते हैं। महान ग्रंथ गीता का पाठ भी बिना पुस्तक देखे करते हैं।

दान के पैसे से गुरुकुल की चलती व्यवस्था

देवघर के एक दानवीर ने कुछ जमीन पर छोटे-छोटे फूस के कमरे बनाकर दिए, इनमें स्कूल चल रहा है। आवास के लिए चार सौ वर्गफीट जमीन व 80 हजार की राशि  दी। राधाकांतानंद ने बच्चों के लिए समाज के आगे हाथ फैलाए। कहीं से ईंट मिली तो कहीं से छड़, बस छात्रावास तैयार हो गया। स्कूल व छात्रावास के संचालन में करीब डेढ़ लाख हर माह खर्च होता है। इसकी व्यवस्था को स्वामी माह के 20 दिन कभी कोलकाता तो कभी किस अन्य शहर का भ्रमण कर रकम का जुगाड़ करते हैं।