झारखंड के 80 सरकारी स्कूलों को स्कूल ऑफ एक्सीलेंस में तब्दील किया गया है जिसका लक्ष्य सरकारी स्कूलों में भी प्राइवेट की तरह एजुकेशन देना है. यहां क्लास 6 से लेकर 12 तक के वंचित वर्ग, स्लम के बच्चे या ऑटो चलाने वाले या फिर मजदूर के बच्चे शिक्षित हो सकेंगे. यहां प्राइवेट स्कूलों की तरह ही स्मार्ट क्लासरूम में बिल्कुल निशुल्क शिक्षा दी जा रही है. यहां आदिवासी और गरीब परिवारों के बच्चों के स्किल, क्रिएटिविटी और पर्सनेलिटी को सुधारकर सरकार इन्हें भी 12वीं के बाद करियर में आनेवाले चुनौतियों का समाना करने के लिए तैयार करना चाहती है.
इसके बाद अब दिल्ली की तर्ज पर झारखंड में भी सरकारी स्कूलों को देखकर ये एहसास होगा कि यह प्राइवेट स्कूल की तरह सुविधा-संसाधन सम्पन्न है. प्राइवेट स्कूलों में स्मार्ट क्लास में जाने के लिए वंचित वर्ग के परिवारों के पास न तो पैसे और संसाधन हैं. सामाजिक आर्थिक बैकग्राउंड कमज़ोर होने के कारण ये बच्चे सरकारी स्कूलों में ही दाखिला ले सकते हैं. यहां पढ़ने वाली किसी लड़की के माता और पिता दोनो मजदूर हैं. किसी बच्चे के पिता ऑटो चलाकर परिवार चलाते हैं. ऐसे में प्राइवेट स्कूल के खर्चे उठाने में वो सक्षम शायद ही हो पाते. लेकिन यहां बच्चों को पढ़ाकर वो खुश हैं. वहीं बच्चे भी यहां पढ़ाई करके आत्मविश्वास से भरे दिख रहे हैं.
ऐसे ही एक स्कूल ऑफ एक्सीलेंस की इंग्लिश टीचर कहती हैं कि यहां 6 महीनों के अंदर ही इन बच्चो में काफी परिवर्तन दिख रहा है. उनका लगातार आत्मविश्वास बढ़ा है. यही नहीं उनकी स्किल और क्रिएटेविटी भी बढ़ी है. स्कूल के गलियारों में लगे बोर्ड पे इनका हुनर दिखता है. यहां किसी बच्चे ने चंद्रयान 3 पे लिखा है तो किसी ने कोई आर्ट बनाया है. यह अब तक सरकारी स्कूल था लेकिन स्कूल ऑफ एक्सीलेंस में ये अब बदले बदले से दिखते हैं जहाँ झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के शिक्षित, खुशहाल और समृद्ध राज्य का सपना साकार होता नजर आ रहा है l
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