सुभाष चंद्र बोस की 127वीं जयंती पर याद किए गए नेताजी, मूर्ति पर हुआ माल्यार्पण, पद चिन्हों पर चलने का लिया संकल्प।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस के त्याग और बलिदान को जन जन तक पहुंचाने बिरसा सुभाष यात्रा पहुंची रामगढ़ ।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की रामगढ़ से जुड़ी हैं कई लम्हों कि यादें।
रामगढ़ कांग्रेस अधिवेशन में गांधीजी से नेताजी के उभरे थे मतभेद, हुआ था नरम दल और गरम दल का स्थापना।
रामगढ़ : देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व निछावर करने वाले त्याग और बलिदान की मूर्ति नेताजी
सुभाष चंद्र बोस की 127 वीं जयंती पर उनके आदर्शों पर चलने का संकल्प लेते हुए उनकी जयंती पर। उन्हें नमन किया गया।
इस मौके पर सुभाष जयंती कमेटी, रामगढ़ की ओर से रामगढ़ के श्रद्धेय स्थली सुभाष चौक पर स्थित उनकी आदम कद प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया । वही मौजूद विभिन्न वक्ताओं ने महापुरुष सुभाष जी की जीवनी पर प्रकाश डाला और उसे अपने जीवन में आत्मसात करने का संकल्प लिया ।
मौके पर रामगढ़ छावनी परिषद कि नामित सदस्य कृति गौरव, बजरंग महतो, गुरुद्वारा के प्रधान परमदीप सिंह, कमल बगड़िया, अंकित सिंह कारला, करमजीत सिंह जग्गी, समाजसेवी जय कुमार अग्रवाल, रविकांत, सुशील श्रीवास्तव, शिबू डांगी, बलराम साहू, संजीव खंडवाल, मनमोहन सिंह लांबा आदि उपस्थित थे! नेताजी सुभाष जयंती कमेटी के बन्नी सिंह गांधी ने कार्यक्रम का संचालन किया ।
बिरसा सुभाष यात्रा का हुआ जोरदार स्वागत ।
तत्पश्चात नेताजी सुभाष चंद्र बोस के त्याग और बलिदान को जन जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन के तत्वधान में बिरसा मुंडा के जन्म स्थल खूंटी से निकाली गई बिरसा सुभाष यात्रा, मोटरसाइकिल रैली में मौजूद क्रांतिकारी स्टूडेंट्स का नेताजी जयंती कमिटी की ओर से बन्नी सिंह गांधी और समाजसेवी जयसिंह अग्रवाल ने पुष्पगुच्छ भेंट कर स्वागत किया और स्टूडेंट्स द्वारा इस तरह के कार्यक्रम चलाए जाने पर उनका हौसला अफजाई करते हुए आभार व्यक्त किया ।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की रामगढ़ से जुड़ी हैं कई लम्हों कि यादें, रामगढ़ कांग्रेस अधिवेशन में गांधीजी से नेताजी के उभरे थे मतभेद, हुआ था नरम दल और गरम दल का स्थापना।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की कई लम्हों की यादों को रामगढ़ अपने इतिहास में समेटे हुए है। रामगढ़ से ही अंग्रेजों के खिलाफ जंग का ऐलान किया गया था। रामगढ़ में 1940 के कांग्रेस के 53वें अधिवेशन में ही नेताजी ने महात्मा गांधी से अलग होकर, देश की आजादी का बिगुल फूंका था। आज उन्हीं जैसे वीर क्रांतिकारियों के त्याग और बलिदान का बदौलत हम आजाद अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त आजाद भारत के नागरिक हैं।